कर्म से चिंता को समाप्त कर सकते हैं, दुखदर्शी के बजाय दूरदर्शी बनो -मुनि श्री प्रमाण सागर

अभिषेक जैन रतलाम-खुद चिंताग्रस्त होकर दूसरों की परेशानी का कारण मत बनो। चिंता विनाश का कारण है। दुखदर्शी की बजाए दूरदर्शी बनो। जब-जब मन में नकारात्मकता आएगी, तब-तब आपका पुरुषार्थ घटता जाएगा। लोगों को आज की चिंता नहीं और कल के बारे में चिंता कर अपना सब कुछ गंवा रहे है। अगर जीवन में सफलता पाना है तो चिंता की बजाए चिंतन करना सीखे। इससे आपका आज और आने वाला कल स्वर्णिम हो जाएगा।
यह बात दिगंबर जैन धर्म प्रभावना चातुर्मास समिति द्वारा लोकेंद्र भवन में आयोजित चातुर्मास में संत शिरोमणि विद्यासागरजी के शिष्य मुनि 108 प्रमाण सागरजी ने कहा। उन्होंने कहा चिंता नकारात्मकता को जन्म देती है और जहां नकारात्मक भाव मन में आएंगे तब तक जीवन में अधूरापन रहेगा। भविष्य की चिंता में उलझकर अपना आज नष्ट न करें। अपने आज को सुखद और सुंदर बनाने का प्रयास करें। भविष्य की चिंता से क्या होगा, क्योंकि वही होगा जो मंजूर ए खुदा होगा।
मुनिश्री ने कही कुछ खास बातें
युवा अपने परिजनों को चिंता में नहीं डाले और खुद घर से संकल्प लेकर निकले कि उन्हें सुरक्षित घर लौटना है। इनके ऐसे आचरण से घर वालों की चिंता समाप्त हो जाएगी।
किसी तरह का खोटा काम नहीं करना चाहिए। दूसरों की नजर में किया गया गलत काम भी चिंता का बड़ा कारण है।
हमें चिंता की बजाय चिंतन करना चाहिए और खुद की चिंता का उन्मूलन करने के साथ ही दूसरों के कष्टों को भी समाप्त करने का प्रयास करना चाहिए।
हमें ऐसा कोई कार्य नहीं करना चाहिए कि जिससे परिवार, समाज, संस्कृति, धर्म, कुल और राष्ट्र का नुकसान हो और आपकी भी छवि लोगों की चिंता का कारण बने।
हर शंकालु और चिंतित चेहरे को पढ़ो और जहां सवाल दिखे उसे हल करने का प्रयास करे। यही सफल जीवन की कुंजी और पूंजी है।
मेरा काम टेंशन लेने का नहीं देने का है... इस वाक्य को सुधारा जाना चाहिए क्योंकि इसमें अहम का संचार हो रहा है। न टेंशन लेने का और न टेंशन देने का और अटेंशन रहना चाहिए।
    संकलन अभिषेक जैन लुहाडिया रामगंजमंडी

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