सलाह भाई से ले लो पर बिना मांगे उसको देना नहीं:मुनि श्री सुव्रत सागर

अभिषेक जैन सागर-कैसे चले,कैसे उठें, क्या चेष्ठा करें, क्या खाये, क्या पिये। इसे लेकर आचार्य कहते है की यत्नपूर्वक ही यह सभी क्रियाएं करना ही सदाचरण है। आचार्य श्री  विद्यासागरजी महाराज सदैव किसी को शिष्यता तभी प्रदान करते है जब उसकी श्रद्धा को परख लेते है। यह बात मुनिश्री सुव्रत सागरजी महाराज ने अंकुर कालोनी में धर्मसभा में कही और स्वयं को संयम मार्ग मे आने का प्रसंग सुनाते हुए कहा की आचार्य श्री ने हमें अनेक बार परख कर दीक्षा प्रदान की।
सलाह आज हर कोई फ्री मे देता है इसी पर प्रकाश डालते हुए बैल और गधे का उदाहरण देते हुए बताया की कहा की गधे ने बैल को बीमारी की सलाह दी जिसका परिणाम ये हुया की गधे को बैल का कार्य करना पड़ा बैल आराम मे रहा अत: बिना मांगे सलाह नहीं देना। सलाह भाई से लेना पर बिन मांगे देना नहीं। लक्ष्य निर्धारण की श्रंखला मे मुनि श्री ने बताया की जीवादि सददहण जीवादि सात तत्वों का श्रद्धान करना होना लक्ष्य मोक्ष प्राप्त करना है जिसका प्रमुख गुण श्रद्धा,निष्ठा,आस्था,समर्पण है। जैसे नाई के यहां कटिंग कराते वक्त वह जिस मुद्रा पर आपको मोडता है अाप उसी अनुसार मुड़ते जाते हैं। इसी तरह आत्मकल्याण के लिए आगम में जो कुछ बताया है उसी अनुसार आपको चलना होगा श्रृद्धा गुण ही ज्ञान और चारित्र को सम्यकता देती है बेटा बाप की नहीं सुनता है बाप बेटे की नहीं सुनता पर आप मंदिर मे आकार तल्लीनता से गुरु के प्रवचन सुनते हैं। यह श्रृद्धा का गुण है जी आपको खीचे चली आ रही है इस पंचम काल का यह चमत्कार है मंदिर मे विराजित भगवान की प्रतिमा के प्रति आपकी संयम समर्पण की श्रद्धा ही है जैसे मरीज डॉ.के प्रति जैसा श्रद्धावान है वेसे ही हमे देव शास्त्र गुरु के प्रति श्रद्धावान हो तो मोक्षमार्ग सुलभ होगा, पर श्रद्धा मजबूत हो डावा डोल न हो।
  

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