भगवान की प्राचीन प्रतिमा का अतिशय तब होता है जब सप्त व्यसन का त्यागी उसे स्पर्श करता है : मुनि श्री विमल सागर

अभिषेक जैन सागर-आचार्य श्री विद्यासागरजी  महाराज के शिष्य मुनि श्री विमलसागरजी ,मुनि अनंतसागर, मुनि श्री धर्मसागरजी ,मुनि श्री अचल सागरजी , मुनिश्री  अतुलसागरजी  और मुनि श्री भावसागर जी महाराज पार्श्व नाथ दिगंबर जैन बड़ा मंदिर परिसर में विराजमान हैं।
शनिवार को मुनि श्री विमल सागर जी महाराज ने धर्मसभा को संबोधित करते हुए कहा कि अभिषेक और शांति धारा प्रतिदिन दान देकर करना चाहिए क्योंकि यह पुण्य वर्धन क्रियाएं हैं।
अभिषेक का अधिकार सप्त व्यसन के त्यागी को ही होना चाहिए भगवान की प्राचीन प्रतिमा के अतिशय तभी होते हैं जब सप्त व्यसन के त्यागी प्रतिमा का स्पर्श करते हैं जो व्यक्ति अभिषेक करने से वंचित हो जाते है वह भगवान को स्पर्श कर सकते है और यदि हो सके तो अभिषेक पाठ और शांति धारा भी मौखिक रूप से पढ़ ले और गंधोदक धारण कर लें। मुनिश्री ने कहा अलग अलग वेदी पर अलग अलग व्यवस्था नहीं होकर एक ही वेदी पर अभिषेक शांतिधारा हो तो अच्छा रहेगा अनुकूलता नहीं है तो अलग अलग समय पर भी अभिषेक शांतिधारा कर सकते हैं जहां की जैसी व्यवस्था हो वैसा करें।
 

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