तन का काला ठीक है, परंतु मन का काला ठीक नहीं -आर्यिका विज्ञमतिमाता

अभिषेक जैन कोटा-मां विशुद्ध मति सभागार तलवंडी में चल रहे गणधर वलय स्त्रोत्र सेमिनार में गुरुवार को आर्यिका विज्ञमति माताजी  ने कहा कि गणधर मुनिराज असीम रिद्धियों के धारी होते हैं। तपश्चर्ण के माध्यम से इतनी शक्तियां अर्जित हो जाती हैं कि आपके स्पर्श मात्र से ही सभी रोगों का निदान हो जाता है। आपके तप से शरीर के सभी मल भी औषधीय रूप में परिवर्तित हो जाते हैं। श्रुतज्ञानवर्ण अंतराय के उत्कृष्ट क्षयोप्सम से आप श्रुत के असीम ज्ञान के धनी होते हैं। आप के हाथों में रखा गया रुखा-सूखा भोजन भी दूध, घी के सामान मधुर व अमृत युक्त हो जाता है। इतनी असीम रिद्धियों के धनी होते हुए भी आप के परिणाम निर्मल होते हैं। परन्तु प्राणी थोड़ा सा ज्ञान होते ही स्वयं को ही सब कुछ मानने लगते हैं। तन से रोगी हुआ व्यक्ति तो फिर भी प्रयासों से ठीक हो जाएगा, परन्तु जो व्यक्ति मन से अपने विचारों से रोगी कषाय हो जाता है, वह धर्म और समाज के लिए घातक है। तन का काला होना ठीक है, परंतु मन का काला होना ठीक नहीं। हमें अंदर और बाहर से एक समान ही होना चाहिए, धर्म में मायाचारी होना नर्क का मार्ग है।
    

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