जरूरत पाप ठुकराने व धर्म अपना कर फर्ज निभाने की है-मुनि श्री प्रमाण सागर

अभिषेक जैन रतलाम-हमें बुराइयों, नशा, अहम का त्याग कर इन्हें ठोकर मार कर आगे बढ़ना चाहिए। आज जरूरत पाप को ठुकराने की और धर्म को अपना कर फर्ज निभाने की है।
यह बात दिगंबर जैन धर्म प्रभावना चातुर्मास समिति द्वारा लोकेंद्र भवन में आयोजित चातुर्मास में मुनिश्री प्रमाणसागरजी ने कही। उन्होंने कहा माता-पिता, गुरुजनों और मित्रों का तिरस्कार करने वाले लोग जीवन को कष्ट में डालकर खुद ठोकर खाने का प्रयत्न कर रहे हैं, जतन कर रहे हैं। मुनिश्री ने कहा जो जैसा बोता है उसे वैसा ही फल मिलता है, और ठोकर मारने वाला भविष्य में खुद दर-दर की ठोकरे खाता है।मुनिश्री प्रमाणसागरजी ने कहा हमें हमेशा से ही अच्छी संगति, साहित्य, सलाह, ज्ञान और धर्म की बातों का अनुसरण करना चाहिए, इनका श्रवण करना सकती है। मगर आज का इंसान बेहतर सलाह और संगत को छोडक़र विसंगति और कलह के पीछे दौड़ रहा है। उन्होंने कहां कि ऐसा ही अंहकार रावण को भी था और उसने विभीषण की सलाह नहीं मानी, धर्म की संगत को नहीं अपनाया तो उसे अपना जीवन नष्ट करना पड़ा और लोग आज भी उसे बुराई के प्रतीक के रुप में मानते है। इसलिए हमेशा अच्छे साहित्य, संगत और सलाह को अपने आप हर मुश्किल आसान हो जाती है, और हम ठोकरे खाने से बच सकते है।

पद, गरिमा, पैसा क्षणिक है
मुनिश्री ने कहा इंसान को कभी भी पद, गरिमा, पैसों , मान की ऊंचाइयों पर पहुंच कर अपनी जमीन नहीं भूलना चाहिए। क्योंकि ये सभी क्षणिक है। अंत काल कुछ साथ नहीं जाएगा। पैसे और प्रेम में जमीन और आसमान का अंतर है। प्रेम से पैसा कमाया जाता है और पैसे से प्रेम गंवाना पड़ता है। इसलिए ऊंचाइयों को छूने के बाद किसी का तिरस्कार करना, अनादर करना, बुरा करना, भूल जाना, ठुकराना अधर्म है।
   

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