शिवपुरी। विधानसभा चुनाव में शिवपुरी जिले की पांच सीटों पर इस बार जोरदार घमासान के आसार बन रहे हैं। पांचों सीटों में से किसी भी सीट के बारे में यह सुनिश्चित नहीं कहा जा सकता कि उक्त सीट फलां दल को जाएगी। यहां तक कि पिछोर विधानसभा क्षेत्र जहां से पांच बार विधायक केपी सिंह चुनाव जीत चुके हैं।
इस बार उनकी राह उतनी आसान नजर नहीं आ रही है। इसके संकेत पिछले विधानसभा चुनाव में भी मिल चुके हैं। तीन माह पहले कोलारस उपचुनाव में जीत हांसिल करने वाली कांग्रेस के लिए इस बार मुकाबला काफी कड़ा रहने की उम्मीद है। ठीक यहीं स्थिति पोहरी विधानसभा क्षेत्र में भी देखने को मिल रही है। कुल मिलाकर एंटीइंकंबेंसी फैक्टर से कोई भी विधायक मुक्त नजर नहीं आ रहा है।
शिवपुरी जिले की पांच सीटों पर 2013 में हुए चुनाव में कांग्रेस को कोलारस, करैरा और पिछोर तीन विधानसभा क्षेत्रों में विजयश्री हांसिल हुई थी। जबकि भाजपा ने शिवपुरी और पोहरी में जीत हांसिल की थी। शिवपुरी और पोहरी में भाजपा ने अपना कब्जा बरकरार रखा था। जबकि कोलारस और करैरा में भाजपा अपने कब्जे को बरकरार नहीं रख पाई थी।
यहीं कारण था कि 2008 में जिले की पांच सीटों में से चार पर विजयश्री हांसिल करने वाली भाजपा मात्र दो सीटों पर सीमित रह गई थी। 2008 से 2013 के विभिन्न विधानसभा क्षेत्रों के आंकड़ों की तुलना करे तो स्पष्ट होता है कि 2008 में कोलारस से भाजपा उम्मीदवार देवेंद्र जैन महज साढ़े तीन सौ मतों से चुनाव जीते थे। लेकिन 2013 में देवेंद्र जैन 25 हजार मतों से चुनाव हार गए थे। उपचुनाव में सहानुभूति लहर के बाद दिवंगत विधायक रामङ्क्षसह यादव के सुपुत्र महज 8 हजार मतों से चुनाव जीते और तब से अब तक इस विधानसभा क्षेत्र में कांग्रेस का प्रभाव और अधिक कमजोर हुआ है।
वहीं भाजपा ने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व में पूरी ताकत लगाई है। यहां तक कि हार के बाद भी मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान जनता का आभार व्यक्त करने कांग्रेस नेताओं से पहले पहुंचे थे। कांग्रेस विधायक महेंद्र यादव के खिलाफ तीन माह में एंटीइंकंबंसी बढ़ी है। सहानुभूति लहर का असर भी समाप्त हो चुका है।
पोहरी विधानसभा क्षेत्र की बात करें तो 2013 में भाजपा विधायक प्रहलाद भारती लगातार दूसरी बार चुनाव जीते और उन्होंने एक नया रिकॉर्ड बनाया।
लेकिन यह भी सच्चाई हैं कि 2008 में जहां वह 25 हजार मतों से चुनाव जीते थे। वहीं अपने पुराने प्रतिद्वंदी हरिवल्लभ शुक्ला से 2013 के विधानसभा चुनाव में वह महज तीन साढ़े तीन हजार मतों से चुनाव जीत पाए। इस बार भी श्री भारती को टिकट मिलने की उम्मीद है और उनका यह तीसरा मुकाबला आसान नहीं रहना वाला है। करैरा विधानसभा के 2008 के चुनाव में भाजपा प्रत्याशी रमेश खटीक ने कांग्रेस प्रत्याशी बाबू राम नरेश को 12 हजार मतों से पराजित किया था।
लेकिन 2013 में रमेश खटीक का टिकट काटकर भाजपा ने ओमप्रकाश खटीक को उम्मीदवार बनाया और वह कांग्रेस प्रत्याशी शकुंतला खटीक से इतने ही मतों से पराजित हो गए। पांच साल में शकुंतला खटीक अपने कार्यकाल से मतदाताओं को संतुष्ट नहीं कर पाई। उनके खिलाफ पूरे क्षेत्र में विरोध का वातावरण है और भाजपा भी 2008 में जीते रमेश खटीक को उम्मीदवार बनाने की दिशा में आगे बढ़ रही है। विधायक के खिलाफ क्षेत्र में सत्ताविरोधी लहर है और इस विधानसभा क्षेत्र में भी जोरदार संघर्ष के आसार बन रहे हैं। कांग्रेस और बसपा के बीच यदि गठबंधन हुआ तो करैरा सीट बसपा के खाते में जा सकती है। कुल मिलाकर करैरा में भी परिदृश्य किसी भी दल के पक्ष में साफ-साफ नजर नहीं आ रहा।
पिछोर विधानसभा क्षेत्र से 1993 से लगातार कांग्रेस विधायक केपी सिंह चुनाव जीत रहे हैं। 2013 से पहले हर चुनाव वह काफी आसानी से जीतते रहे हैं। उनकी जीत का अंतर 18 से 20 हजार मतों के बीच रहा है। 2018 में भाजपा ने पिछोर में हारी हुई लड़ाई लड़ी। भाजपा ने बाहरी उम्मीदवार प्रीतम लोधी को उम्मीदवार बनाया लेकिन उस चुनाव में प्रीतम लोधी ने कांग्रेस प्रत्याशी केपी सिंह के छक्के छुड़ा दिए। 2018 के आंकड़े से पता चलता है कि पिछोर में भी बदलाव की हवा बह रही है और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के हाल के पिछोर दौरे में जो जनसैलाव उमड़ा वह कांग्रेस खैमे में चिंता करने के लिए काफी है।
इस विधानसभा क्षेत्र में कांग्रेस के लिए 2018 में मुकाबला आसान नहीं रहने वाला है। शिवपुरी विधानसभा क्षेत्र में वर्तमान विधायक यशोधरा राजे सिंधिया का अच्छा प्रभाव है। वह यहां से तीन बार विधायक का चुनाव जीती हैं। 2013 में उन्होंने कांग्रेस प्रत्याशी वीरेंद्र रघुवंशी को 11 हजार से अधिक मतों से पराजित किया था।
इस कार्यकाल में शिवपुरी की समस्याओं के कारण यशोधरा राजे को काफी दिक्कत का सामना करना पड़ा। वहीं कांग्रेस के खिलाफ भी इस क्षेत्र में नगर पालिका अध्यक्ष कांग्रेस का होने के कारण आक्रोश है। शिवपुरी विधानसभा क्षेत्र में भी कांग्रेस और भाजपा दोनों दलों को परेशानी का सामना करना पड़ेगा, ऐसे आसार नजर आ रहे हैं।