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आर्यिका विज्ञानंमति माताजी |
अभिषेक जैन सागर-मृत्यु भोज का चलन बढ़ता ही जा रहा है। अब तो इसमें मिठाइयां भी परोसी जा रही हैं । इसका मतलब आपको परिजन की मृत्यु की खुशी है। क्योंकि मिठाई तो खुशी के मौके पर खिलाई जाती है । चाहे दिखावा हो या प्रतिस्पर्धा मृत्यु भोज में मिठाई कभी नहीं परोसी जाए , हो सके तो मृत्युभोज के निषेध पर सामाजिक निर्णय होना चाहिए।यह बात आर्यिका विज्ञानमति माता ने नेहानगर जैन मंदिर में धर्मसभा में कही।
उन्होंने कहा कि पहले दुख की घड़ी में कई दिनों तक कढ़ाही भी नहीं चढ़ती थी । शोकाकुल परिवार में शामिल होने आए रिश्तेदारों को दाल-रोटी की व्यवस्था पड़ोसी करते थे । लेकिन अब मृत्युभोज का स्वरूप बदल गया है। स्मृति स्वरूप वर्तन बांटे जाने लगे । ये सब दिवंगत आत्मा के प्रति दिखावटी श्रद्धांजलि है । इसका निषेध होना चाहिए। उन्होंने कहा कि चेहरे की सफ़ेदी व मुरझाती चमड़ी जीवन के अंतिम पड़ाव का संकेत दे रही हैं । फिर भी कर्मों की अधीनता छोड़ी नहीं जाती है । संयमित जीवन स्वयं चालू कर दो नहीं तो ये भोग विलासिता बुढ़ापा खराब कर देगी । ईश्वर ने आपके संचित पुण्य के रूप में ये मनुष्य जीवन दिया है और अच्छे कुल के साथ सकुशल शरीर दिया है , समय पर सदुपयोग कर लो नहीं तो ये पुण्य विकास के नाम पर दिए जाने वाले सरकारी पैसे की तरह उपयोग न होने पर लैप्स हो जाएगा । जिस शरीर को संवारने में जीवन का महत्वपूर्ण समय गवां रहे हो , उसको तो जलाना है । यमराज आपकी चिट्ठी के इंतजार में नहीं बैठा । जीवात्मा चाहती है कि मैं इच्छाओं को शांत करके मुक्त हो जाऊं मगर हम कर्मों के गुलाम हो गए । जीवन यदि ग़लत दिशा में जा रहा है तो तुरंत सही रास्ते पर आ जाओ , चौराहे का इंतजार मत करो । तभी इन कर्मों से मुक्त होकर हम मुक्ति के मार्ग पर चल सकेंगे ।
संकलन अभिषेक जैन लुहाडिया रामगंजमंडी
उन्होंने कहा कि पहले दुख की घड़ी में कई दिनों तक कढ़ाही भी नहीं चढ़ती थी । शोकाकुल परिवार में शामिल होने आए रिश्तेदारों को दाल-रोटी की व्यवस्था पड़ोसी करते थे । लेकिन अब मृत्युभोज का स्वरूप बदल गया है। स्मृति स्वरूप वर्तन बांटे जाने लगे । ये सब दिवंगत आत्मा के प्रति दिखावटी श्रद्धांजलि है । इसका निषेध होना चाहिए। उन्होंने कहा कि चेहरे की सफ़ेदी व मुरझाती चमड़ी जीवन के अंतिम पड़ाव का संकेत दे रही हैं । फिर भी कर्मों की अधीनता छोड़ी नहीं जाती है । संयमित जीवन स्वयं चालू कर दो नहीं तो ये भोग विलासिता बुढ़ापा खराब कर देगी । ईश्वर ने आपके संचित पुण्य के रूप में ये मनुष्य जीवन दिया है और अच्छे कुल के साथ सकुशल शरीर दिया है , समय पर सदुपयोग कर लो नहीं तो ये पुण्य विकास के नाम पर दिए जाने वाले सरकारी पैसे की तरह उपयोग न होने पर लैप्स हो जाएगा । जिस शरीर को संवारने में जीवन का महत्वपूर्ण समय गवां रहे हो , उसको तो जलाना है । यमराज आपकी चिट्ठी के इंतजार में नहीं बैठा । जीवात्मा चाहती है कि मैं इच्छाओं को शांत करके मुक्त हो जाऊं मगर हम कर्मों के गुलाम हो गए । जीवन यदि ग़लत दिशा में जा रहा है तो तुरंत सही रास्ते पर आ जाओ , चौराहे का इंतजार मत करो । तभी इन कर्मों से मुक्त होकर हम मुक्ति के मार्ग पर चल सकेंगे ।
संकलन अभिषेक जैन लुहाडिया रामगंजमंडी
