शिक्षक दिवस विशेष-शिक्षक समाज का शिल्पकार और मार्गदर्शक"

शिक्षक अर्थात शिक्षा का बोध कराने वाला या शिक्षा का दान करने वाला... शिक्षा पाना जीवन की तैयारी नहीं वरन् शिक्षा ही जीवन है, बिना शिक्षा के मानव जीवन जानवरों के तुल्य माना गया है। उद्देश्य की पूर्ति के लिए शिक्षा का ज्ञान होना अति आवश्यक है।
शिक्षा से नई सोच और लक्ष्य का जन्म होता है। शिक्षा के द्वारा ही मानवीय गुणों का बीजारोपण किया जा सकता है जो आगे चलकर एक कल्पवृक्ष का आकार लेता है और जीवन में सुख और शांति का अनुभव कराता है।
युवा में असीम शक्ति और ऊर्जा भरी हुई है लेकिन उसका प्रयोग कब और कहाँ, किन - किन उद्देश्यों की पूर्ति के लिए करना है, यह केवल एक शिक्षक ही बता सकता है।
शीर्ष शिक्षकों की श्रेणी में जिन शिक्षकों का नाम स्मरण करते हैं, उन्होंने इस देश और दुनिया के निर्माण में अमूल्य योगदान दिया है।
पूर्व और पश्चिम की संस्कृति के सेतु के नाम से जाने वाले देश के प्रथम उपराष्ट्रपति और द्वितीय राष्ट्रपति डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जन्मदिन को ही हम " शिक्षक - दिवस " के रूप मनाते हैं। वे विभिन्न शिक्षण संस्थानों में लगभग चार दशक तक बतौर शिक्षक के अपनी सेवाएं देते रहे।
हर एक व्यक्ति का अपने जीवन में एक अलग उद्देश्य होता है और इसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए वह कार्य करता है, उद्देश्य ही है जो मानव जाति को अन्य जीवों से अलग रखता है, उद्देश्य को सार्थक करने के लिए एक शिक्षक का मार्गदर्शन अति आवश्यक है।
सादगी, रचनात्मक, नेत्रत्व, सच्चाई - ईमानदारी, धैर्य - उदारता और परोपकार जैसे मानवीय गुणों का बीजारोपण रोपण एक शिक्षक अपने शिष्य के अंदर करता है।
शिक्षक द्वारा छात्रों को केवल सैद्धांतिक रूप से ही नहीं बल्कि निजी जीवन में शिक्षा के प्रयोग को प्रायोगिक तौर पर सिखाया जाता है।
शिक्षक केवल वो नहीं होता है जो विद्यालय में ज्ञान प्रदान करते हैं, शिक्षक हर वो व्यक्ति होता है जिससे हमें अपने जीवन में कुछ न कुछ सीखने को मिलता है फिर चाहे वो छोटा हो या बड़ा......
एक आदर्श शिक्षक भी हमेशा अपने छात्रों से सीखता रहता है, सीखना एक सतत विकास की क्रिया है, इसमें उम्र कभी भी आड़े नहीं आती है। आप जहाँ भी है, जिसके साथ भी रहे सीख सकते हैं।
किसी भी बात को, किसी के भी व्यवहार को हमेशा सकारात्मक रूप में लेना चाहिए। और उससे सीखने की कोशिश करते रहना चाहिए।
" सकारात्मक नहीं प्रेरणा की तरह लेना सीखो। "
परंतु आज आधुनिकीकरण के युग में शिक्षा का व्यापारीकरण हो जाने से शिक्षक स्वयं एक व्यापारी बन गया है।
और इस बजह से शिक्षक और छात्र के बीच आदर भाव और रिश्ते पूर्व की तरह नहीं रहे।
छात्र इस बात अनजान हैं कि यदि " शिक्षक युग निर्माता है " तो " छात्र राष्ट्र के भाग्य विधाता हैं "
व्यवहारिक ज्ञान की बजह अब किताबी ज्ञान पर ज्यादा जोर दिया जा रहा है, इसकी बजह एक यह भी है कि व्यक्ति की आवश्यकता बढ़ती जा रही है और वो शीघ्र अति शीघ्र धन कमाने की लोलुपता में फंसता जा रहा है।
पाठ्यक्रम में भारतीय संस्कृति और संस्कार, योग जैसे शिक्षा का शामिल होना नितांत आवश्यक है।
सत्ता के शीर्ष पर बैठे लोगों को भी समय-समय पर धर्म गुरूओं का मार्गदर्शन पाना जरूरी है। इसका सबसे बड़ा उदाहरण आचार्य चाणक्य है जो एक महान दार्शनिक, अर्थशास्त्री और विचारक के साथ ही कुशल कूटनीतिज्ञ थे। तक्षशिला जैसे विश्वविद्यालय में शिक्षक रहे।
और युवा शक्ति को प्रेरित करने वाले महान वैज्ञानिक मिसाइल मैन डॉ ए. पी.  जे. अब्दुल कलाम भले ही देश के प्रथम नागरिक राष्ट्रपति रहे और लोग उन्हें आम जनता के राष्ट्रपति के रूप में पहचानती थी, मगर उस महान शख्सियत ने कहा था कि मुझे एक वैज्ञानिक, राष्ट्रपति के नाम से नहीं बल्कि एक शिक्षक के रूप जाना जाए।
अंतिम समय में एक संस्थान में लेक्चर देते समय हमसे दूर चले गए मगर संदेश दे गए कि हमें अपने काम में लगे रहना चाहिए।
मगर देश में राजनीति का शिकार हुए हैं शिक्षक.... शासकीय योजनाओं का क्रियान्वयन, सर्वे सभी काम शिक्षक के जिम्मे है और पगार के नाम पर एक रोजगार गारंटी योजना में काम करने वाले मजदूर और सश्रम कारावास की सजा काट रहे एक अपराधी से भी कम है।
वे अधिकारी, राजनेता ये जानते हैं कि सरकारी स्कूलों में शिक्षण कार्य सुचारू रूप से नहीं चलता है इसलिए कोई भी वरिष्ठ अधिकारी या राजनेता अपने बच्चों को सरकारी स्कूलों में पढ़ने नहीं भेजता है।
एक शिक्षक को अपनी जिम्मेदारी समझनी चाहिए कि उसे एक नये युग का निर्माण करना है। किसी भी राष्ट्र का विकास, भविष्य एक शिक्षक के हाथों में होता है।
शिक्षक ज्ञान बाँटता है इसलिए भारत ही इकलौता देश है जहाँ शिक्षक को गुरू की महिमा दी गई है।
और इतना ही नहीं गुरू को सर्वश्रेष्ठ माना जाता है।
गुरू गोविंद दोऊ खड़े, काके लागूं पांय।
बलिहारी गुरू आपकी, गोविंद दियो बताय।।
गुरू: ब्रह्मा, गुरू: ही विष्णु, गुरू: देवो महेश्वर:।
गुरू: साक्षात परब्रह्म, तस्मै श्री गुरूवे नम:।।
यदि युग निर्माता ( शिक्षक)  के संदर्भ में इतना कहा गया है तो भाग्य विधाता ( छात्र)  में भी इनकी पाँच गुणों का होना जरूरी है -
काक चेष्टा, वको ध्यानम्, श्वान निद्रा तथैव च।
अल्पहारी, ग्रह त्यागी, विद्यार्थिन पंच लक्षण:।।
शिक्षक दिवस पर सभी शिक्षकों को कोटि कोटि प्रणाम
( शिक्षक का, शिक्षक के लिए, शिक्षक द्वारा)
                                                  इंजी. वीरबल सिंह "वीर"
                                                      ( लेखक एवं कवि )
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