श्रद्धावान विवेकवान क्रियावान का नाम श्रावक है श्री प्रशांत सागर

अभिषेक जैन आष्टा -नगर के श्री पार्श्वनाथ दिगंबर जैन मंदिर किला पर चातुर्मास के लिए 4 माह पूर्व विराजित किए गए पांचों कलशों को लाभार्थी परिवारों को समाज के प्रमुखों के द्वारा मुनि संघ के पावन सानिध्य उपस्थिति में दिए गए। वहीं मुनिश्री के प्रवचनों के बाद जुलूस के रूप में इन सभी कलशों को लाभार्थी परिवारों के घरों पर जाकर समाज ने दिए। जैन समाज ने चातुर्मास कलश विस्थापन के लिए पार्श्वनाथ दिगंबर जैन मंदिर परिसर में कार्यक्रम आयोजित किया। यहां मुनि प्रशांत सागरजी महाराज ने कहा कि श्रद्धावान, विवेकवान और क्रियावान का नाम श्रावक है। दान और पूजा श्रावक के विशेष कर्तव्य हैं। भगवान के गुणों का गुणानुवाद करना पूजा है। सूर्य का विशेष उपकार है, वह तपता है। उसी के कारण भूमि गर्म होती है, फिर बारिश होती है। गर्मी में पतझड़, फिर बसंत आता है, हरियाली छा जाती है। वनस्पति से ही सब कुछ मिलता है। तीर्थंकर की वाणी जीवों के उपकार के लिए खिरती है।
कलयुग मे भगवान मिलना संभव नहीं निर्वेग सागर जी
मुनि श्री निर्वेग सागर जी महाराज ने अपने आशीर्वचन में कहा कि कलयुग में भगवान मिलना संभव नहीं है। जैन कुल मिला है, इसे सार्थक करें। प्रत्येक श्रद्धालु की भावना यही रहना चाहिए कि मेरा घर वहीं पर हो जहां जैन मंदिर हो। नित्य देव दर्शन हो सकें। ऐसे ही बच्चों को संस्कार देना चाहिए।

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