नर्मदा के दो लाल आमने - सामने

राजनीतिक हलचल-शिवराज सिंह चौहान और अरुण यादव खुद को नर्मदा का सच्चा सेवक कहते हैं क्योंकि दोनों का जन्म नर्मदा की धरा पर ही हुआ है. शिवराज का गांव जहां नर्मदा के किनारे बसा है तो यादव का गढ़ कहे जाने वाले निमाड़ में नर्मदा चारों तरफ फैली है. नर्मदा इस बार सूबे की सियासत में एक बड़ा मुद्दा है. दोनों पार्टियां एक दूसरे पर नर्मदा के साथ छल करने का आरोप लगाती रही हैं. यही वजह है कि कांग्रेस ने शिवराज सिंह के खिलाफ अरुण यादव को मैदान में उतारा है ताकि नर्मदा के मुद्दे पर बीजेपी को उसके ही घर में घेरा जा सके. जबकि प्रत्याशी घोषित होने के बाद अरुण ने पहला बयान यही दिया है कि नर्मदा से हो रहा अवैध उत्खनन उनका पहला मुद्दा होगा.
1957 से वजूद में आई बुधनी विधानसभा सीट शुरुआत में कांग्रेस का गढ़ मानी जाती थी, लेकिन सूबे में जनसंघ के पैर जमाने के बाद से इस सीट पर कांग्रेस की पकड़ ढीली होती चली गई, जबकि बीजेपी यहां अपनी जड़ें मजबूत करती गई. बुधनी में अब तक 15 विधानसभा चुनाव हो चुके हैं, जिनमें पांच बार कांग्रेस को जीत मिली तो 6 बार बीजेपी ने यहां जीत हासिल की है. हालांकि कांग्रेस यहां पिछली पांच बार से लगातार हार रही है. कांग्रेस ने बुधनी में आखिरी बार 1998 में जीत हासिल की थी. उस वक्त कांग्रेस प्रत्याशी देवकुमार पटेल ने यहां बीजेपी के खिलाफ जीत दर्ज की थी. लेकिन, उसके बाद से यहां कांग्रेस का वनवास जारी है. कांग्रेस ने बुधनी पर हर प्रयोग करके देखा, लेकिन उसे अब तक जीत नसीब नहीं हुई है. इस बार पार्टी ने अब तक का सबसे बड़ा दांव लगाते हुये अरुण यादव को मैदान में उतारा है. ऐसे  में देखना दिलचस्प होगा कि यादव यहां कांग्रेस की वापसी करा पाएंगे या नहीं.

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