हमारा जीवन योग, प्रयोग, पीड़ा और प्रेरणा से जुड़ा है : मुनि प्रमाणसागरजी

मनावर-संत मुनि प्रमाणसागरजी महाराज तथा विराटसागरजी महाराज के मंगल प्रवेश पर समाज ने नगर को स्वागत द्वारों एवं बैनरों से सजाया था। मुनि संघ  के साथ श्वेतांबर  मुनि दिव्यचंद्रविजयजी भी शामिल थे। भरड़पूर से मुनि संघ  का चल समारोह जूनी मनावर स्थित बड़े मंदिर से होता हुआ धार रोड स्थित खंडेलवाल मांगलिक भवन पहुंचा। श्रावकों को प्रातः प्रमाणसागरजी महाराज  ने अपने विचार प्रकट करते हुए कहा कि मनावर के वर का वरण करो, श्रेष्ठ आचरण करो, संत नहीं पथ को देखों।
मुनि दिव्यचंद्रजी ने कहा की विचार अलग हो सकते है लेकिन मार्ग एक है। इसीलिए भगवान महावीर के आदर्शों का दोनों समुदाय पालन करते है। मुनि सुगंधीसागरजी ने अपने उद्बोधन में कहा की जैन धर्म सबकों साथ लेकर चलता है। महावीर ने हमें सन्मार्ग दिखाया है। इसीलिए जैन साधू समाज के सामने अपने आदर्श प्रस्तुत करते है। जब संतों का मिलन होता है तो ऐसा लगता है जैसे गंगा में जमुना का संगम हो रहा है। मुनिद्वय के चल समारोह में साध्वी रितू दीदी तथा पिंकी दीदी भी शामिल थी। दोपहर में मुनि श्री प्रमाणसागरजी ने अपने प्रवचन में कहा कि हमारी सद्‌बुद्धि जीवन में प्राप्त संयोगों की देन है।
हमारा जीवन योग, प्रयोग, पीड़ा और प्रेरणा से जुड़ा है।
शरीर को साधना में लगाना ही योग है। हम संचय करने में जितनी तत्परता दिखाते है, उतनी दान देने में क्यों नहीं। संत ने कहा अपने से कमतर देखों तो हमें पीड़ा होनी चाहिए और अच्छा देखों तो उससे प्रेरणा लेना चाहिए। शाम को मुनि प्रमाणसागरजी का शंका समाधान कार्यक्रम हुआ।
     संकलन अभिषेक जैन लुहाड़ीया रामगंजमंडी

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