सच्चे देव, शास्त्र, गुरु तीन रत्न हैं, यह सम्यक दर्शन, ज्ञान अाैर चारित्र से जोड़ते हैं: गणनी ज्ञानमती माताजी

अभिषेक जैन आष्टा-कर्मों को पृथक करने के लिए यह जिनालय जैन मंदिर है। भगवान के बताए हुए मार्गों पर चलने वाले मयूर पंख वाले साधु संत जहां स्वयं चलते हैं वहीं सभी को भी भगवान के बताए हुए मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करते हैं। संपूर्ण पापों से पलक झपकते ही भगवान की सच्ची भक्ति करने से छुटकारा मिल जाता है। यह बातें बुधवार को गणनी प्रमुख ज्ञानमती माताजी ने पार्श्वनाथ दिगंबर जैन मंदिर किला परिसर में अपने आशीष वचन के दौरान कहीं। उन्होंने कहा कि जैनेश्वरी दीक्षा लेकर में मन, वचन, काया से प्रभु को नमस्कार करती हूं। सच्चे देव, शास्त्र, गुरु यह तीन रत्न हैं। यह सम्यक दर्शन सम्यक ज्ञान सम्यक चारित्र से जोड़ते हैं। इससे हम तीन लोक के स्वामी बन सकते हैं।
मिथ्यातत्व मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु: मानव का सबसे बड़ा शत्रु मिथ्यातत्व है
। साधु संत का कोई पंथ नहीं होता है। माताजी ने कहा कि जब भी कोई पिच्छी धारी संत आपके नगर में आते हैं तो उन्हें प्रणाम कर उनको आहार चर्या कराएं। अगर आपको कोई चर्या उनकी दोष पूर्ण लगे तो उस बात से उनके गुरु को अवगत कराएं तथा समाज बैठकर निर्णय ले।
सब जीव जीना चाहते हैं:  ज्ञानमती माताजी ने आगे कहा कि जैन धर्म में अहिंसा को परमोधर्म माना गया है। सब जीव जीना चाहते हैं मरना कोई नहीं चाहता।
इस धर्म में प्राणि वध के त्याग का सर्वप्रथम उपदेश है। केवल प्राणों का ही वध नहीं बल्कि दूसरों को पीड़ा पहुंचाने वाले असत्य भाषण को भी हिंसा का एक अंग बताया है।

  

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