दिशा उनको दी जाती है जो भटक जाते हैं, आप सभी लोग तो विदिशावासी हो अनेकांत सागर जी

अभिषेक जैन विदिशा-आचरण ही आत्मा की सबसे बडी़ संपत्ति है। पाप को छोड़ो और पुण्य को जोड़ो बिना पाप के छोड़े पुण्य नहीं जुड़ सकता। उपरोक्त उद्गार आचार्य शांति सागर जी महाराज की परंपरा के सप्तम प्रतिष्ठाचार्य आचार्य अनेकांत सागर जी महाराज ने जैन भवन किरी मोहल्ला में व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि दिशा उनको दी जाती है जो भटक जाते हैं आप लोग तो सभी विदिशा वासी हो। जब तक आपकी दिशा सही नहीं होगी तब तक आप संसार में ही भटकते रहोंगे। उन्होंने आत्म दर्शन को महत्व देते हुए कहा कि जिन दर्शन से ही आत्म दर्शन मिलता है।जैसे जो जिस विषय का ज्ञाता होता है उसे उसी में आनंद आता हैं। उसी प्रकार जो आत्म दर्शन को प्राप्त करना चाहते हैं वह जिन गुरुओं और जिन धर्म की आराधना करते हैं। आत्मा की अनुभूति के लिए अपने आपको बाहरी प्रदर्शन से मुक्त करना होगा। उन्होंने नगर के किला अंदर जैन मंदिर की बात करते हुए कहा कि आपका यह किले अंदर का मंदिर हजारों वर्षों की धरोहर है। यह वास्तविक स्वरूप में है। इतने भव्य जिनालयों के दर्शन करने के पश्चात भी यदि आप अपने दर्शन न कर पाओ तो समझना आप दर्शन में नहीं प्रदर्शन में ही लगे हो।आचरण ही आत्मा की सबसे बड़ी संपत्ति है। स्वयं के द्वारा स्वयं को जाना जा सकता है। उन्होंने कहा कि यदि आप शुभ को प्राप्त करना चाहते हो तो अशुभ को छोड़ना आवश्यक है।
जब तक आप अशुभ को छोड़कर शुभ में नहीं आओगे तब तक शुद्ध बुद्ध नहीं हो सकते। उन्होंने कहा कि आप लोग भगवान शीतलनाथ की नगरी के लोग हो। उन्होंने कहा कि मां जिनवाणी हमको जिनेन्द्र भगवान के मार्ग पर चलने का उपदेश देती हैं मां के दूध में कोई मिलावट नहीं होती उसे छानना नहीं पड़ता और जिसको छानना पड़े और मिलावट हो वह कभी मां का दूध नहीं होता। उन्होंने कहा कि जिनवाणी को जनवाणी नहीं बनाइए। उन्होंने कहा कि आपके नगर से भी मोक्ष मार्ग पर युवक-युवतियां निकले हैं लेकिन जो निकल गए हमें उसकी चर्चा नहीं करनी आगे जो मोक्ष मार्ग पर और चलना चाहते हैं वह चलें।
उन्होंने कहा कि मोक्ष मार्ग में त्रिकाल का रिजर्वेशन होता है। उस रिजर्वेशन को कराओ। उन्होंने अपनी आगामी यात्रा के बारे में जानकारी देते हुए कहा कि मांगी तुन्गी के पंचकल्याणक के पश्चात हमारा चातुर्मास पूना महाराष्ट्र में हुआ और चातुर्मास के उपरांत इंदौर, भोपाल होते हुए आपकी धर्म नगरी विदिशा में आना हुआ, हम लोगों यहां पर अच्छा लगा। उन्होंने मुनि सेवक संघ की तारीफ करते हुए कहा कि परमात्मा और महात्माओं की भक्ति करने से सुख शांति मिलती है। उन्होंने सभी को अपना आशीर्वाद प्रदान किया। उन्होंने कहा कि यह जैन दर्शन आत्म दर्शन को कराता है जो धर्म का आचरण करता है। उसे पद और प्रतिष्ठा तो गिफ्ट में ही मिल जाया करती है। इसलिए संसार के सुखों के लिए धर्म आराधना मत करना। उन्होंने कहा कि सांची और उदयगिरि की गुफाओं के नाम से धन मत कमाना परमात्मा और महात्माओं की सेवा करके उनके गुणों की प्राप्ति के लिए अपने आपको लगाना। उन्होंने कहा कि भगवान शीतलनाथ की धर्म नगरी है। तीर्थंकर पद की प्राप्ति भी पुण्य योग से मिलती है। इसलिए पाप को छोड़ो पुण्य को जोड़ने में ही अपने आपको लगाओ।उन्होंने खान पान एवं रहन सहन की बात करते हुए कहा कि पहले आप लोग बाहर जाते थे तो छन्ना बाल्टी और लोटा साथ में रखते थे ये आपके जैन प्रतीक चिन्ह थे। हम साधुओं ने तो अपने चिन्ह पिच्छी कमंडलु को साथ रखा लेकिन आप लोग अपने चिन्हों को भूल गए।
     

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