बूंदी-शहर के देवपुरा में शनिवार को आयोजित धर्मसभा मेें प्रवचन देते हुए मुनिश्री विश्रांत सागरजी महाराज ने कहा कि आत्मा ही ध्याता है। आत्मा ही ध्येय है।
आत्मा ही कर्तापन को कर्तृत्व पन में दर्शाती है। करोड़ों का दान कर लेना और निर्मत्व भाव रखें तो कर्म बंध हो सकता है। यदि निर्मत्व भाव ना रखें तो वह कर्म से छूटता है। मुनिश्री ने कहा कि मोक्ष मार्ग वीरों का मार्ग है। यहां व्यवस्थाएं जुटाई नहीं जाती, यहां व्यवस्थाएं बन जाती है। कुंठित भावों से राम राम कहने वाला भी नर्क चला जाता है और विशुद्ध भावों से मरा मरा कहने वाला भी स्वर्ग चला जाता है। मनुष्य के भाव सही होना चाहिए। एक शूकर के द्वारा साधु को आवास दान देने पर जब शूकर अगली पर्याय में देव गति के प्राप्त होता है तो संत भवन बनाने वाले को भी नियम से शुभ गति प्राप्त होती है।
संकलन अभिषेक जैन लुहाड़ीया रामगंजमंडी
मोक्ष वीरों का मार्ग है, मनुष्य का भाव सही होना चाहिए: मुनिश्री
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Sunday, January 13, 2019
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