सांसारिक विषयों के प्रति आसक्ति मुक्ति मार्ग में बाधक होती है अंतरमति माताजी

हाटपिपल्या-जन्म जन्मांतर के प्रबल पुण्योदय से मुक्तिपथ का मार्ग प्रशस्त होता है। अंतःकरण की चेतना में वीतरागी आत्मस्वभाव का उदय, सद्गुरु के सान्निध्य से सहज संभव हो जाता है। वीतरागी मनोभाव की विलक्षण अनुभूति शब्द सामर्थ्य से सर्वथा परे है। जागृत होने वाला भवसागर से तर जाता है। लेकिन सांसारिक विषयों के प्रति आसक्ति मुक्ति मार्ग में बाधक होती है। यह बात आचार्य श्री विद्यासागरजी महाराज की सुशिष्या आर्यिका अंतरमति माताजी ने नगर के आदिनाथ जिनालय में प्रवचन के दौरान कही।
उपस्थित श्रावक-श्राविकाएं मंत्रमुग्ध अवस्था में जिनवाणी के सारतत्व से रूबरू होने का दिव्य अनुभव करते रहे। आर्यिकाजी ने सहज सरल शब्दों में दिगंबर जैन श्रमण संस्कृति की शाश्वत परंपरा के अनुरूप धर्म के मर्म का प्रभावी विश्लेषण किया।
उल्लेखनीय है आर्यिका संघ के नगर प्रवेश के अवसर पर सकल दिगंबर जैन समाज द्वारा अगवानी की गई। इसके बाद धर्मसभा आयोजित की गई। समाजजनों ने आर्यिका संघ से शीतकालीन वाचना के लिए श्रीफल भेंट करते हुए निवेदन किया।
संकलन अभिषेक जैन लुहाडीया रामगंजमंडी

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