खुरई-दुनिया में तुमने तीन तरह के मनुष्य देखे होंगे। पहले वे जो विघ्न, संकट के डर से किसी काम को करना ही नहीं चाहते। दूसरे वे जो कार्य तो शुरू करते हैं किंतु परेशानी दिखते ही उसे अधबीच में छोड़कर लौट आते हैं। तीसरे वे हैं चाहे कितनी बाधाएं आए अपने अद्भुत लक्ष्य के प्रति लगन का परिचय देकर गंतव्य को पा ही लेते हैं। यह बात नवीन जैन मंदिर से विहार करने की पूर्व बेला में अपने आशीर्वचन देते हुए आचार्यश्री विद्यासागर महाराज ने कही। उन्हाेंने कहा कि एक बार कदम बढ़ाने पर लौटना ही नहीं जानते, लक्ष्य पर अनवरत चलते रहते हैं।
जैसे सागर से मिलने की प्यास लिए, आस लिए नदी सरपट भागती रहती है बीच में बड़ी-बड़ी चट्टानों से अवरोध पाकर पीछे चली जाती है किंतु पुनः अपनी समग्र चेतना के साथ आगे बढ़कर एक ही तीव्र प्रवाह में चट्टानों को चूर-चूर करती हुई रेत बनाकर उसी की छाती पर पैर रखकर आगे बढ़ जाती है।
आचार्यश्री ने कहा कि तन का रोग, मन का लोभ और इन्द्रिय का भोग मंजिल तक पहुंचने में बाधाएं डाल सकता है किंतु तुम तन-मन और इन्द्रिय से परे चेतन का ख्याल करना, जो तुम हो, इसका ध्यान रखना। स्थिर मन ही मंजिल तक पहुंचाता है, जिन्होंने मंजिल को पा लिया है उन्हें ही देखना है।
अपने से पीछे वालों को नहीं आगे वालों को देखकर चलते ही जाना है। पीछे मुड़कर देखने से भूत ही दिखेंगे पीछे भूत ही भूत हैं आगे सुनहरा भविष्य ही भविष्य है। उन्हींने कहा कि समय को देखो कभी नहीं लौटता, जो गुजर जाता है वह 'था' और आने वाला है वह 'गा' कहलाता है, इस गाथा को छोड़ो। वर्तमान में प्रवर्तमान, धावमान, गतिमान रहो अपने स्वभाव की ओर। बाहर के प्रभाव को पर भाव मानो जब तक स्वभाव का गांव नहीं आता तब तक कहीं ठहरना नहीं है। आचार्यश्री विद्यासागर महाराज की आहारचर्या श्रीमंत परिसर में अशोक, सुषमा सिंघई के घर संपन्न हुई। शीतकालीन प्रवास पर अतिशय क्षेत्र नवीन जैन मंदिर में विराजमान आचार्यश्री विद्यासागर महाराज का विहार जरुआखेड़ा सागर की ओर शनिवार को दोपहर 2 बजे हो गया।
आचार्यश्री का विहार कराने श्रद्धालुअाें की भीड़ उमड़ी। अाचार्यश्री शाम ढलने के पहले बनहट गांव में पहुंचे, वहां उनका रात विश्राम हुअा। रविवार की सुबह विहार शुरू हाेगा, अाचार्यश्री ससंघ जरूवाखेड़ा पहुंचेंगे। उसके बाद अागे के विहार की दिशा तय हाेगी।
संकलन अभिषेक जैन लुहाड़ीया रामगंजमंडी
जैसे सागर से मिलने की प्यास लिए, आस लिए नदी सरपट भागती रहती है बीच में बड़ी-बड़ी चट्टानों से अवरोध पाकर पीछे चली जाती है किंतु पुनः अपनी समग्र चेतना के साथ आगे बढ़कर एक ही तीव्र प्रवाह में चट्टानों को चूर-चूर करती हुई रेत बनाकर उसी की छाती पर पैर रखकर आगे बढ़ जाती है।
आचार्यश्री ने कहा कि तन का रोग, मन का लोभ और इन्द्रिय का भोग मंजिल तक पहुंचने में बाधाएं डाल सकता है किंतु तुम तन-मन और इन्द्रिय से परे चेतन का ख्याल करना, जो तुम हो, इसका ध्यान रखना। स्थिर मन ही मंजिल तक पहुंचाता है, जिन्होंने मंजिल को पा लिया है उन्हें ही देखना है।
अपने से पीछे वालों को नहीं आगे वालों को देखकर चलते ही जाना है। पीछे मुड़कर देखने से भूत ही दिखेंगे पीछे भूत ही भूत हैं आगे सुनहरा भविष्य ही भविष्य है। उन्हींने कहा कि समय को देखो कभी नहीं लौटता, जो गुजर जाता है वह 'था' और आने वाला है वह 'गा' कहलाता है, इस गाथा को छोड़ो। वर्तमान में प्रवर्तमान, धावमान, गतिमान रहो अपने स्वभाव की ओर। बाहर के प्रभाव को पर भाव मानो जब तक स्वभाव का गांव नहीं आता तब तक कहीं ठहरना नहीं है। आचार्यश्री विद्यासागर महाराज की आहारचर्या श्रीमंत परिसर में अशोक, सुषमा सिंघई के घर संपन्न हुई। शीतकालीन प्रवास पर अतिशय क्षेत्र नवीन जैन मंदिर में विराजमान आचार्यश्री विद्यासागर महाराज का विहार जरुआखेड़ा सागर की ओर शनिवार को दोपहर 2 बजे हो गया।
आचार्यश्री का विहार कराने श्रद्धालुअाें की भीड़ उमड़ी। अाचार्यश्री शाम ढलने के पहले बनहट गांव में पहुंचे, वहां उनका रात विश्राम हुअा। रविवार की सुबह विहार शुरू हाेगा, अाचार्यश्री ससंघ जरूवाखेड़ा पहुंचेंगे। उसके बाद अागे के विहार की दिशा तय हाेगी।
संकलन अभिषेक जैन लुहाड़ीया रामगंजमंडी
