डुंगरपुर-आचार्य अनुभव सागर जी महाराज ने कहा कि मनुष्य जीवन भर तन सजाने में लगा रहता है। आईने के सामने खड़े होकर प्रतिबिंब को ही अपना रूप मानकर निहारता और सजाता रहता है। जबकि आईना शब्द ही कह रहा है- आई-ना। अर्थात जो दिख रहा है, वह मैं नहीं हूं और जो मैं हूं, वह तो दिखाई देता ही नहीं है। हमारा सारा आकर्षण नश्वर तन-धन पर है।
अविनश्वर को देखने का पुरुषार्थ हमारी श्रद्धा का विषय ही नहीं बन पा रहा है। यह सोमवार को प्रगति नगर स्थित जैन मंदिर में धर्म सभा में प्रवचन के दौरान कह रहे थे। आचार्य ने कहा कि कोई अंधा यदि गड्ढे में गिर जाए तो वह संवेदना का पात्र बनता है किंतु आंख वाला गिरे तो हंसी का। हमें आंखें मिली हैं तो उसका उपयोग जड़ की बजाय चेतन की ओर देखने का होना चाहिए। पूजन-प्रवचन आदि की सभी क्रियाएं उसी धर्म तक पहुंचने का मार्ग है ओर धर्म यानि हमारा स्वभाव, हमारा लक्ष्य।
आचार्य ने कहा कि धर्म करने की वस्तु नहीं होती। चूंकि धर्म का अर्थ होता है, स्वभाव या प्रकृति। स्वभाव शब्द ही कह रहा है-स्व-भाव यानि मेरा अपना भाव।
द्रव्य के जिस गुण को किसी भी अवस्था में द्रव्य से अलग नहीं किया जा सकता, वह उसका स्वभाव होता है। संसारी प्राणी विभाव से ऊपर उठे, तब तो उसका स्वभाव की ओर दृष्टिपात हो। प्रवचन से पूर्व दीप प्रज्ज्वलन किया गया। आचार्य को शास्त्र भेंट और पाद प्रक्षालन श्रद्धालुओं ने किया। शाम को आरती, भक्ति और प्रश्नोत्तर कार्यक्रम हुए। इस अवसर पर बड़ी संख्या में समाजजन और श्रद्धालु मौजूद थे।
संकलन अभिषेक जैन लुहाड़ीया रामगंजमंडी
अविनश्वर को देखने का पुरुषार्थ हमारी श्रद्धा का विषय ही नहीं बन पा रहा है। यह सोमवार को प्रगति नगर स्थित जैन मंदिर में धर्म सभा में प्रवचन के दौरान कह रहे थे। आचार्य ने कहा कि कोई अंधा यदि गड्ढे में गिर जाए तो वह संवेदना का पात्र बनता है किंतु आंख वाला गिरे तो हंसी का। हमें आंखें मिली हैं तो उसका उपयोग जड़ की बजाय चेतन की ओर देखने का होना चाहिए। पूजन-प्रवचन आदि की सभी क्रियाएं उसी धर्म तक पहुंचने का मार्ग है ओर धर्म यानि हमारा स्वभाव, हमारा लक्ष्य।
आचार्य ने कहा कि धर्म करने की वस्तु नहीं होती। चूंकि धर्म का अर्थ होता है, स्वभाव या प्रकृति। स्वभाव शब्द ही कह रहा है-स्व-भाव यानि मेरा अपना भाव।
द्रव्य के जिस गुण को किसी भी अवस्था में द्रव्य से अलग नहीं किया जा सकता, वह उसका स्वभाव होता है। संसारी प्राणी विभाव से ऊपर उठे, तब तो उसका स्वभाव की ओर दृष्टिपात हो। प्रवचन से पूर्व दीप प्रज्ज्वलन किया गया। आचार्य को शास्त्र भेंट और पाद प्रक्षालन श्रद्धालुओं ने किया। शाम को आरती, भक्ति और प्रश्नोत्तर कार्यक्रम हुए। इस अवसर पर बड़ी संख्या में समाजजन और श्रद्धालु मौजूद थे।
संकलन अभिषेक जैन लुहाड़ीया रामगंजमंडी