मनुष्य का मूल स्वभाव होता है वीतराग आचार्य श्री



जबलपुर-विश्व वंदनीय आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज ने कहा एक व्यक्ति किसी कार्य के लिये पानी गर्म कर रहा था तभी आग लग गयी। उसे लगा की आग को बुझाने के लिये गर्म पानी का उपयोग कैसे किया जा सकता है। विचार करने पर उसने देखा कि पानी का मूल स्वभाव तो ठंडा ही है। उसे उपयोगिता वश गर्म किया गया है , गर्म जल भी आग बुझाने में सक्षम हैं। उसने गर्म जल से आग को बुझा दिया। जिस तरह जल का स्वभाव शीतल होता है उसी तरह मनुष्य का मूल स्वभाव भी वीतराग है। यानी मनुष्य मूल राग द्वेष आडम्बर से परे है मनुष्य स्वभाव से परोपकारी और दयालु होता है। मनुष्य स्वभाव के दो गुण होते है, पाप एवम पुण्य।जब तक मनुष्य पाप के रास्ते नही चलता तब तक उसके पुण्य संचित होते जाते है।आचार्य श्री ने कहा एक  सज्जन ने कहा मैं कुछ  दान देना चाहता हु। मेरा ऐसा मानना है कि उन्होंने दान दिया नही उन्होंने दान पुण्य को सद्कार्यों के रूप मे जमा किया है। उसके अच्छे परिणाम उसको मिलेगे!
     संकलन अभिषेक जैन लुहाड़िया रामगंजमण्डी

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