सौंदर्य प्रसाधनों से सुंदरता नहीं केवल भ्रम होता है: विमर्श सागर जी



दुर्ग-औषधि दान करने से निरोगी शरीर और सुंदर रूप की प्राप्ति होती है। संसार के सभी जीव इसकी इच्छा रखते हैं।
धर्मात्मा जीव औषधि दान और भगवान की भक्ति से सुंदर रूप को प्राप्त करते हैं, लेकिन वे रूप की आकांक्षा नहीं करते। सुंदर रूप को प्राप्त करके भी धर्मात्मा जीव संसार के भोगों में उलझता नहीं, बल्कि संसार से पार करने वाली जिनदीक्षा को धारण कर स्व-पर का हित करता है। सुंदर रूप प्राप्त करके भी वह विचार करता है कि मेरा रूप स्वरूप किसी के मन में विकार उत्पन्न करने का साधन न बनें। यह बातें सुमतिनाथ दिगंबर जैन मंदिर में धर्मसभा के दौरान भावलिंगी संत विमर्श सागर जी  मुनिराज ने कही।
आचार्य ने कहा कि वर्तमान में व्यक्ति भोजन पर उतना खर्च नहीं करता, जितना सौंदर्य प्रसाधनों पर करता है। ब्यूटी पार्लरों में एक-एक व्यक्ति दिन में हजारों रुपए खर्च कर डालता है, लेकिन सौंदर्य के नाम पर उसे सिर्फ धोखा, भ्रम मिलता है।
      संकलन अभिषेक जैन लुहाड़ीया रामगंजमंडी

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