परतापुर-अध्यात्म योगी चतुर्थ पट्टाचार्य सुनील सागर जी महाराज ने सिद्धचक्र महामंडल विधान अंतर्गत उपदेश देते हुए कहा कि सुख हो या दुख सह लेता हूं, सुन लेता हूं, बह लेता हूं, ये देह में हूं लेकिन देह से जुदा रह लेता हूं। प्रभु भक्ति का ही प्रसाद है कि देह और आत्म जुदा है। यह परम तपस्वी दिगंबर साधुओं की चर्या से चलता है। मन का मजा और इंद्रियों का सुख तो प्राप्त हो जाता है, बाहरी क्रियाकलाप से पर आत्मा का आनंद भेदविज्ञान से ही आता है। उन्होने कहा कि आत्महत्या किसी परेशानी या समस्या का समाधान नहीं है। आत्महत्या करने से कोई कर्जदार कर्जमुक्त नहीं हो जाता अपितु उसे गधा घोडा बनकर कर्ज चुकाना पड़ता है।
देश की जनता को बोध होना चाहिए कि किसी भी परिस्थिति में भले ही गांव, समाज, देश छोडना पडे तो कोई बात नहीं पर आत्महत्या का विचार भी कभी नहीं करना। गांव बदले चल जाएगा पर शरीर बदलने की जरूरत नहीं है। मनुष्य जन्म अनमोल है, इसे मिट्टी में ना घोब रे, अब जो मिला है कभी न मिलेगा कभी नहीं, कभी नहीं, कभी नहीं रे। युवाओं से कहा कि किसी भी परिस्थिति में स्वयं को मिटाने की चेष्ठा नहीं करना। जीवन में सावधानी जरूर रखना।
संकलन अभिषेक जैन लुहाड़ीया रामगंजमंडी
देश की जनता को बोध होना चाहिए कि किसी भी परिस्थिति में भले ही गांव, समाज, देश छोडना पडे तो कोई बात नहीं पर आत्महत्या का विचार भी कभी नहीं करना। गांव बदले चल जाएगा पर शरीर बदलने की जरूरत नहीं है। मनुष्य जन्म अनमोल है, इसे मिट्टी में ना घोब रे, अब जो मिला है कभी न मिलेगा कभी नहीं, कभी नहीं, कभी नहीं रे। युवाओं से कहा कि किसी भी परिस्थिति में स्वयं को मिटाने की चेष्ठा नहीं करना। जीवन में सावधानी जरूर रखना।
संकलन अभिषेक जैन लुहाड़ीया रामगंजमंडी
