दमोह -शहर के दिगम्बर जैन नन्हें मंदिर में आचार्यश्री विद्यासागर महाराज के शिष्य मुनिश्री विमल सागर,जी मुनिश्री अनंत सागर जी , मुनिश्री धर्म सागरजी, मुनिश्री अचल सागर जीएवं मुनिश्री भाव सागर जी महाराज के सानिध्य में सोमवार को आचार्य ज्ञानसागर जी महाराज का पूजन हुआ। इस मौके पर धर्मसभा को संबोधित करते हुए मुनिश्री भावसागर जी महाराज ने कहा कि पूज्य ज्ञान सागर जी महाराज ने दुनिया का सर्वश्रेष्ठ कार्य संल्लेखना समाधि मरण करके अपना कल्याण किया था। संल्लेखना में बुद्धि पूर्वक शरीर का त्याग किया जाता है।
जिस प्रकार देहदान मरण के पूर्व घोषणा करके करते हैं। इसी प्रकार कोई रोग हो जाने पर शरीर में परेशानी आ जाने पर घटना घट जाने पर मरण के करीब होते हैं तो संलेखना धारण कर लेते हैं। इसको वीर मरण मृत्यु महोत्सव कहा है। साधक संलेखना धारण करके जल ग्रहण करके जल छोड़ कर धीरे-धीरे प्राण त्याग देता है। बड़े उत्साह पूर्वक त्याग करके मरण करता है।
मुनिश्री अचल सागर जी महाराज ने कहा कि पूज्य ज्ञान सागर जी महाराज ने पूज्य विद्यासागर जी महाराज के सानिध्य में संलेखना धारण की थी। ज्ञान और विद्या शब्द विशेष है। पूज्य ज्ञान सागर जी के ग्रंथों की तुलना बड़े-बड़े संस्कृत के विद्वानों से की गई है। इतनी गर्मी में भी उन्होंने सल्लेखना की यह महत्वपूर्ण है। पूज्य ज्ञान सागर जी महाराज के अंदर अनेकों गुण थे। उन को हम भावांजलि अर्पित करते हैं।
मुनिश्री अनंत सागर जी महाराज ने कहा कि आचार्य कहते हैं कि मैंने बाल्यकाल से जो भक्ति की है उसका फल यदि मिले तो चाहता हूं कि मेरी जब अंतिम सांस निकले और मेरा कंठ अवरुद्ध हो तो आपका नाम लेते ही मेरा कंठ अवरुद्ध हो। अंत समय ऐसा भी होता है कि णमोकार मंत्र भी मुख से नहीं निकलता है। जब भी समाधि दिवस का प्रसंग आता है तो हम यही भावना भाते हैं कि मेरा भी समाधि मरण हो इसी के लिये मैंने दीक्षा ली है।
उन्होंने कहा आचार्य श्री विद्यासागर महाराज के संघ में पिच्छि धारियों और ब्रह्मचारी, ब्रह्मचारिणीओं की संख्या दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। उनके पास जो कुछ आज है पूज्य ज्ञान सागर जी की सेवा का फल है।
मुनिश्री विमल सागर जी महाराज ने कहा कि मेरे गुरुदेव इतने सुंदर हैं कि उनके गुरुदेव कितने सुंदर रहे होंगे। इतने तपों की गर्मी में संलेखना धारण की। ऐसे अध्यात्म साधक थे जिनकी भोजन और जल की ओर दृष्टि नहीं थी। आत्मरस की ओर दृष्टि थी। तीर्थों पर विशुद्धि और एकाग्रता बढ़ती है।
संकलन अभिषेक जैन लुहाड़ीया रामगंजमंडी
जिस प्रकार देहदान मरण के पूर्व घोषणा करके करते हैं। इसी प्रकार कोई रोग हो जाने पर शरीर में परेशानी आ जाने पर घटना घट जाने पर मरण के करीब होते हैं तो संलेखना धारण कर लेते हैं। इसको वीर मरण मृत्यु महोत्सव कहा है। साधक संलेखना धारण करके जल ग्रहण करके जल छोड़ कर धीरे-धीरे प्राण त्याग देता है। बड़े उत्साह पूर्वक त्याग करके मरण करता है।
मुनिश्री अचल सागर जी महाराज ने कहा कि पूज्य ज्ञान सागर जी महाराज ने पूज्य विद्यासागर जी महाराज के सानिध्य में संलेखना धारण की थी। ज्ञान और विद्या शब्द विशेष है। पूज्य ज्ञान सागर जी के ग्रंथों की तुलना बड़े-बड़े संस्कृत के विद्वानों से की गई है। इतनी गर्मी में भी उन्होंने सल्लेखना की यह महत्वपूर्ण है। पूज्य ज्ञान सागर जी महाराज के अंदर अनेकों गुण थे। उन को हम भावांजलि अर्पित करते हैं।
मुनिश्री अनंत सागर जी महाराज ने कहा कि आचार्य कहते हैं कि मैंने बाल्यकाल से जो भक्ति की है उसका फल यदि मिले तो चाहता हूं कि मेरी जब अंतिम सांस निकले और मेरा कंठ अवरुद्ध हो तो आपका नाम लेते ही मेरा कंठ अवरुद्ध हो। अंत समय ऐसा भी होता है कि णमोकार मंत्र भी मुख से नहीं निकलता है। जब भी समाधि दिवस का प्रसंग आता है तो हम यही भावना भाते हैं कि मेरा भी समाधि मरण हो इसी के लिये मैंने दीक्षा ली है।
उन्होंने कहा आचार्य श्री विद्यासागर महाराज के संघ में पिच्छि धारियों और ब्रह्मचारी, ब्रह्मचारिणीओं की संख्या दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। उनके पास जो कुछ आज है पूज्य ज्ञान सागर जी की सेवा का फल है।
मुनिश्री विमल सागर जी महाराज ने कहा कि मेरे गुरुदेव इतने सुंदर हैं कि उनके गुरुदेव कितने सुंदर रहे होंगे। इतने तपों की गर्मी में संलेखना धारण की। ऐसे अध्यात्म साधक थे जिनकी भोजन और जल की ओर दृष्टि नहीं थी। आत्मरस की ओर दृष्टि थी। तीर्थों पर विशुद्धि और एकाग्रता बढ़ती है।
संकलन अभिषेक जैन लुहाड़ीया रामगंजमंडी
