मूनिश्री विमल सागर ने कहा-भगवान की भक्ति करने से कर्म ढीले पड़ते हैं


दमोह-आचार्यश्री विद्यासागरजी महाराज के शिष्य मुनिश्री विमल सागरजी, मुनिश्री अनंत सागरजी, मुनिश्री धर्म सागरजी, मुनिश्री अचल सागर जी एवं मुनिश्री भाव सागर जी महाराज के सानिध्य में श्री दिगंबर जैन नन्हे मंदिर में 7 जून दिन को श्रुतपंचमी ज्ञान महामहोत्सव मनाया जाएगा। जिसमें 2000 वर्ष प्राचीन शास्त्रों का महापूजन किया जाएगा। सुबह 6 बजे देव, शास्त्र, गुरु की शोभायात्रा नन्हे मंदिर से घंटाघर होकर नन्हे मंदिर वापस आएगी। फिर श्रुत स्कंध का अभिषेक दमोह नगर के इतिहास में प्रथम बार होगा। 1008 शास्त्र महिलाएं सिर पर रखकर शोभायात्रा में चलेगी और बाद में शास्त्र अर्पण करेंगी। पुरुष भी शास्त्र अर्पण करेंगे षटखंडागम, जयधवला, धवला, महाबंध आदि ग्रंथों की महापूजन होगी।
शास्त्र लकी ड्रा योजना का ड्रा निकाला जाएगा। जिसमें प्रथम, द्वितीय, तृतीय एवं सांत्वना पुरस्कार का चयन होगा। मुनिश्री के प्रवचन होंगे। गुरुवार को इष्टोपदेश ग्रंथ की व्याख्या करते हुए मुनिश्री विमलसागर जी महाराज ने कहा कि भावनाओं का चिंतन करने से विशेष लाभ होता है ध्यान करने से फायदा होता है। भगवान की भक्ति करने से कर्म ढीले पड़ते हैं। एक तरफ दिव्य चिंतामणि रत्न दूसरी तरफ खली का तुकड़ा यदि यह दोनों ध्यान के द्वारा प्राप्त होते हैं तो बुद्धिमान मनुष्य किस में आदर करे, चिंतामणि रत्न यदि किसी को मिल जाए तो उसके मन में जो इच्छा रहती है वह पूरी होती है। प्रातः काल श्री धर्मनाथ भगवान के मोक्ष कल्याणक के अवसर पर शांतिधारा मुनिश्री भाव सागर जी के सानिध्य में हुई। इस मौके पर संबोधित करते हुए श्रुतपंचमी महापर्व का महत्व बताते हुए मुनिश्री ने कहा कि यह वही महान पर्व है जिस दिन लगभग 2000 वर्ष पूर्व षटखंडागम आदि ग्रंथों की रचना हुई थी। यह 39 ग्रंथ सिद्धांत ग्रंथ कहलाते हैं। इनकी रचना आचार्य श्री पुष्पदंत जी और आचार्य श्री भूतबली जी महाराज के द्वारा जेष्ठ शुक्ल पंचमी को पूर्ण हुई थी। इसी कारण इस दिन पुरे भारत में शास्त्रों की पूजन, शोभायात्रा श्रुतस्कंध का अभिषेक होता है। यह ग्रंथ 1 लाख 32 हजार श्लोक प्रमाण है और महाधवल 40 हजार श्लोक प्रमाण है। इसके पूर्व में मौखिक रूप से ग्रंथों का अध्ययन चलता था। लेकिन धीरे धीरे आचार्यों को चिंता हुई इसीलिए उन्होंने ग्रंथों को लिपिबद्ध किया। आज वह ग्रंथ हमारे सामने हैं। ग्रंथों को आचार्यो ने गुफा में बैठकर तपस्या, साधना करके बड़े परिश्रम के साथ लिखे हैं। इसलिए हमें विनय करके और ग्रंथो को पढ़कर उनका उपकार चुकाना चाहिए।
       संकलन अभिषेक जैन लुहाड़ीया रामगंजमंडी

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