सागवाड़ा.-आचार्य सुनीलसागर जी महाराज ने ससंघ के सानिध्य में शनिवार को ऋषभ वाटिका स्थित सन्मति समवशरण सभागार में कहा कि प्रत्येक जीव से कुछ न कुछ सीखा जा सकता है, लेकिन अनुभव एवं ज्ञान द्वारा दी सीख ही जीवन को बदल सकती है। गुरु अनुभव एवं ज्ञान से सीख देता है जिसे प्राप्त कर जीवन का उद्धार किया जा सकता है। उन्होंने धर्म सभा में आचार्य समद्रसागर जी महाराज का स्मरण कर कहा कि पापों के रास्तों से जीवन उलझता ही रहता है और पुण्य का मार्ग सदैव सुलझने के साथ जीवन में आदर्शों का कीर्तिमान स्थापित करता है। उन्होंने धर्म सभा में स्पष्ट किया है कि सर्वज्ञाता दोषरहित विकारों ओर राग द्वेष से दूर वीतरागी कभी भी अपने आपको भगवान नहीं बोलते हैं। मगर इस भौतिक संसार में कुछ पाखंडी, अनपढ़ और अज्ञानी जनता पर अपने अच्छे वक्ता होने का एहसास कराकर कुछ समय के लिए मूर्ख बना सकते हैं। लेकिन ऐसे पाखंडियों की स्वनिर्मित ख्याति जल्दी ही समाप्त हो जाती है। आचार्य सुनीलसागर जी महाराज ने कहा कि जैन शास्त्रों में अठारह दोषों का वर्णन है इन दोषों से रहित व्यक्ति ही ज्ञानवान होता है। जो देश और समाज को कल्याण के मार्ग पर अग्रसर करता है। प्रारंभ में गुरुवंदना के बाद धर्मसभा कॉ मुनि सुधींद्र सागर जीमहाराज ने संबोधित करते हुए कहा कि किसी भी कार्य के लिए मन होना जरूरी है।
संकलन अभिषेक जैन लुहाड़ीया रामगंजमंडी