चारों प्रकार के आहार त्यागने पर ही रात्रि भाेजन का त्याग माना जा सकता है : मुनि श्री प्रशांत सागर जी



मुंगावली-पूर्ण रूप से त्याग किया रात्रि भोजन ही त्याग कहा जाता है। वर्तमान में लोग केवल अन्न के त्याग को ही रात्रि भोजन त्याग का नाम देने लगे हैं। जब तक चारों प्रकार के आहार का त्याग नहीं किया जाए। तब तक सही मायने में रात्रि भोजन का त्याग नहीं माना जा सकता है। उक्त उद्गार शहर में विराजमान आचार्यश्री विद्यासागर जी महाराज के परम प्रभावक शिष्य मुनि श्री प्रशांत सागर जी महाराज ने संत निवास पर धर्म सभा को संबोधित करते हुए कही।
उन्होंने कहा कि रात्रि भोजन का त्याग आज का नहीं यह प्राचीन समय से चला आ रहा है। उन्होंने उदाहरण देते कहा कि आप जेलों में चले जाएं, छात्रावासों में चले जाएं। वहां रात में भोजन नहीं दिया जाता है। यह हमारे संस्कार है और आज लोगो ने रात के भोजन के मायने ही बदल दिए हैं। जहां लोग रात में अन्न का तो त्याग कर देते हैं। वहीं दूसरी ओर बाजार के फलाहार का सेवन करते है जो शरीर के लिए नुकसान दायक रहता है।
मुनिश्री निर्वेग सागर जी महाराज  ने कहा कि अपने बच्चों को बिना कोचिंग की पढाई करने के लिए आत्मनिर्भर बनाएं। वहीं आज देखने में आया है कि माता-पिता अपनी संतानों को शुरू से ही पढ़ाई के लिए उन्हें अपने से दूर भेज देते हैं। इससे माता पिता यहां अकेले परेशान होते हैं और उन्हें संतान का लाभ नहीं मिल पाता है। इसलिए अपनी संतान को अपना व्यापार करने के काबिल बनाएं। इससे आने वाले समय में आपकी सेवा कर सके।
           संकलन अभिषेक जैन लुहाड़ीया रामगंजमंडी

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