बावनगजा -परम पूज्य मुनि श्री प्रमाण सागर जी महाराज ने अपने उद्बोधन मे कहा जिस तरह हीरा मूल्यवान उसके लिये है जो उसकी उपयोगिता समझे उसी तरह जीवन भी मूल्यवान है जो उसकी महता को समझते है और जो जीवन मूल्य को नही समझते सहजते वह हीरे जैसे जीवन को भी व्यर्थ गवा देते है उन्होंने जीवन के लिये चार मुख्य बिंदु पर ध्यान आकृष्ट किया
(1) क्या मिला उन्होंने कहा हमे सत्संग मिला परिवार मिला संस्कार मिला गुरुजनो का समागम मिला यह हमारा पुण्य है कही लोग इतने पुण्यशाली भी नही जीवन में जब से आये रुग्ण है हमे अच्छा शरीर मिला हम समर्थ है लेकिन सब कुछ होने के बाद परिवार मे विवाद यानी स्वस्थ्य शरीर मिला सब तरह से समर्थवान बनाया पर परिवार अनुकल नही मिल पाया यह विकृतियां है लेकिन अपने आप को बड़भागी समझो हमे मिला अच्छा धर्म मिला लेकिन इतना कुछ मिला वह कुछ कम नही जो मिला वह हीरे की पोटली से कम नही।
(2) क्यो मिला मुनि श्री ने ध्यान आकृष्ट करते कहा जो कुछ मिला है वह पूर्व जन्मों के सुख स्वरूप मिला यह हमारे भाग्यशाली होने का परिणाम है हम पुण्य लेकर आये है मुनि श्री ने जोर देते हुए कहा अभागे है वह मनुष्य है जो मनुष्य जीवन मे होंने के बाद भी जानवरों जैसा जीवन जीते है कहा अपने भाग्य को समझे यह जो कुछ मिला पूर्वकृत पुण्य परिणामो की अनुकूलता है हमे अपने मनुष्य जीवन की जड़े भी गहरी करनी है पेड फल कब देता है जब जड़ गहरी होती है।
(3) मनुष्य जीवन किस लिये मिला मुनि श्री पुरजोर देते हुए कहा कि हमे मनुष्य जीवन क्यो मिला मनुष्य जीवन सदुपयोग करने किये मिला उन्होंने कहा तुम कहा हो मनुष्य जीवन विलासिता के नही मिला धन संसार मे रमने के लिये नही मिला मनुष्य जीवन तो मनुष्यता के लिये मिला आत्म उद्धार के लिये मिला भाव भीने उदगार प्रगट करते कहा अगर अभी नही सुधारा तो कभी नही सुधारा जा सकता जो मिला उसका सदुपयोग करना है सदुपयोग से यदि लाभान्वित नही होंगे तो हमने अपने जीवन का मूल्य नही समझा
(4) हम क्या कर रहे है मुनि श्री ने कहा अनर्थ आत्म दुर्गति का कारण है अनीति आत्म पतन कराने वाली है हमें आत्म समीक्षा करनी चाहिए सही है या गलत ठीक है या गलत कहा जीवन सावधानी से चलाने के लिये है गलत दिशा को कोई सुधारना नही चाहता कहता है मनुष्य सब चलता है भेड़ चाल है जहाँ है वहाँ रमता जाता है हम एक ढरे पर जी रहे है यह हमारी अज्ञानता है हमे इसे सही करना होगा हमें वही कार्य करना चाहिए जिसमें आत्मा की भलाई हो और जीवन का कल्याण हो।
संकलन अभिषेक जैन लुहाडिया रामगंजममण्डी
(1) क्या मिला उन्होंने कहा हमे सत्संग मिला परिवार मिला संस्कार मिला गुरुजनो का समागम मिला यह हमारा पुण्य है कही लोग इतने पुण्यशाली भी नही जीवन में जब से आये रुग्ण है हमे अच्छा शरीर मिला हम समर्थ है लेकिन सब कुछ होने के बाद परिवार मे विवाद यानी स्वस्थ्य शरीर मिला सब तरह से समर्थवान बनाया पर परिवार अनुकल नही मिल पाया यह विकृतियां है लेकिन अपने आप को बड़भागी समझो हमे मिला अच्छा धर्म मिला लेकिन इतना कुछ मिला वह कुछ कम नही जो मिला वह हीरे की पोटली से कम नही।
(2) क्यो मिला मुनि श्री ने ध्यान आकृष्ट करते कहा जो कुछ मिला है वह पूर्व जन्मों के सुख स्वरूप मिला यह हमारे भाग्यशाली होने का परिणाम है हम पुण्य लेकर आये है मुनि श्री ने जोर देते हुए कहा अभागे है वह मनुष्य है जो मनुष्य जीवन मे होंने के बाद भी जानवरों जैसा जीवन जीते है कहा अपने भाग्य को समझे यह जो कुछ मिला पूर्वकृत पुण्य परिणामो की अनुकूलता है हमे अपने मनुष्य जीवन की जड़े भी गहरी करनी है पेड फल कब देता है जब जड़ गहरी होती है।
(3) मनुष्य जीवन किस लिये मिला मुनि श्री पुरजोर देते हुए कहा कि हमे मनुष्य जीवन क्यो मिला मनुष्य जीवन सदुपयोग करने किये मिला उन्होंने कहा तुम कहा हो मनुष्य जीवन विलासिता के नही मिला धन संसार मे रमने के लिये नही मिला मनुष्य जीवन तो मनुष्यता के लिये मिला आत्म उद्धार के लिये मिला भाव भीने उदगार प्रगट करते कहा अगर अभी नही सुधारा तो कभी नही सुधारा जा सकता जो मिला उसका सदुपयोग करना है सदुपयोग से यदि लाभान्वित नही होंगे तो हमने अपने जीवन का मूल्य नही समझा
(4) हम क्या कर रहे है मुनि श्री ने कहा अनर्थ आत्म दुर्गति का कारण है अनीति आत्म पतन कराने वाली है हमें आत्म समीक्षा करनी चाहिए सही है या गलत ठीक है या गलत कहा जीवन सावधानी से चलाने के लिये है गलत दिशा को कोई सुधारना नही चाहता कहता है मनुष्य सब चलता है भेड़ चाल है जहाँ है वहाँ रमता जाता है हम एक ढरे पर जी रहे है यह हमारी अज्ञानता है हमे इसे सही करना होगा हमें वही कार्य करना चाहिए जिसमें आत्मा की भलाई हो और जीवन का कल्याण हो।
संकलन अभिषेक जैन लुहाडिया रामगंजममण्डी

