बावनगजा -जिस प्रकार जल की बूंद कमलपत्ता का आश्रय पाकर मोती के बूंद का आश्रय ले लेती है। वहीं बूंद गर्म तवा पर पड़ती है, तो उसका अस्तित्व की समाप्त हो जाता है। उसी प्रकार जिसने प्रभु का आश्रय पा लिया, वह तर गया। जिसने भाव पूर्वक प्रभु का आश्रय न लेकर संसारी जनाें का आश्रय लिया, वह भव सागर में डूब गया।
भावपूर्वक प्रभु का नाम लेने से पाप तो कटते ही है। साथ ही एक दिन वह स्वयं प्रभु बन जाता है। इसमें कोई आश्चर्य नहीं है। प्रभु भक्ति ही जीवन को संभालने का सही तरीका है।
बावनगजा में प्रवचन में मुनिश्री प्रमाण सागरजी महाराज ने यह बात कही। मंगलवार को सिद्धक्षेत्र में प्रवचन के दौरान उन्होंने भक्तामर स्त्रोत के छंदों की व्याख्या की। उन्होंने कहा जैन धर्म में भक्ति का प्रयोजन अपने भीतर की भगवत्ता को प्रकट करने से है। अंतरंग की बुराईयों व विकारो के नष्ट होते ही अपने आप अंदर की भगवत्ता प्रकट हो जाती है। जीवन में कुछ अच्छा गुजरने की क्षमता भगवान की भाव पूर्वक भक्ति करने से ही मिलती है। उन्होंने कहा विडंबना है कि लोग दुख की घड़ी में भगवान का नाम लेते हैं। यदि सुख की घड़ी में प्रभु का नाम स्मरण करते रहे, तो जीवन में कभी दुख आएगा ही नहीं। मुनिश्री ने अंत में कहा कि कर्म काटने के लिए सबसे सीधा व सरल उपाय भगवान का नाम स्मरण ही है। तुम जप-तप, ध्यान न कर सको, तो कोई बात नहीं। भगवान के नाम, उच्चारण मात्र से भाव का उद्धार हो जाएगा। प्रभु की महत्वता पर उन्होंने कहा कि प्रभु इतने उदार है कि वे अपने भक्त को अपने समान बना लेते है। अत: प्रभु भक्ति को अपने जीवनचर्या का अनिवार्य अंग बना लेना चाहिए।
कार्यक्रम का संचालन ब्रह्मचारी विमलभैया ने किया। श्री मंडलोई ने बताया मुनिश्री ने दोपहर में अष्ट पाहुड़ नामक ग्रंथ का स्वाध्याय किया। इसमें देश के विभिन्न क्षेत्रों के 500 लोग शामिल हुए। ग्रंथ का कुछ दिनों स्वाध्याय चल रहा है। शाम को मुनिश्री ने शंका समाधान किया।
संकलन अभिषेक जैन लुहाड़ीया रामगंजमंडी
भावपूर्वक प्रभु का नाम लेने से पाप तो कटते ही है। साथ ही एक दिन वह स्वयं प्रभु बन जाता है। इसमें कोई आश्चर्य नहीं है। प्रभु भक्ति ही जीवन को संभालने का सही तरीका है।
बावनगजा में प्रवचन में मुनिश्री प्रमाण सागरजी महाराज ने यह बात कही। मंगलवार को सिद्धक्षेत्र में प्रवचन के दौरान उन्होंने भक्तामर स्त्रोत के छंदों की व्याख्या की। उन्होंने कहा जैन धर्म में भक्ति का प्रयोजन अपने भीतर की भगवत्ता को प्रकट करने से है। अंतरंग की बुराईयों व विकारो के नष्ट होते ही अपने आप अंदर की भगवत्ता प्रकट हो जाती है। जीवन में कुछ अच्छा गुजरने की क्षमता भगवान की भाव पूर्वक भक्ति करने से ही मिलती है। उन्होंने कहा विडंबना है कि लोग दुख की घड़ी में भगवान का नाम लेते हैं। यदि सुख की घड़ी में प्रभु का नाम स्मरण करते रहे, तो जीवन में कभी दुख आएगा ही नहीं। मुनिश्री ने अंत में कहा कि कर्म काटने के लिए सबसे सीधा व सरल उपाय भगवान का नाम स्मरण ही है। तुम जप-तप, ध्यान न कर सको, तो कोई बात नहीं। भगवान के नाम, उच्चारण मात्र से भाव का उद्धार हो जाएगा। प्रभु की महत्वता पर उन्होंने कहा कि प्रभु इतने उदार है कि वे अपने भक्त को अपने समान बना लेते है। अत: प्रभु भक्ति को अपने जीवनचर्या का अनिवार्य अंग बना लेना चाहिए।
कार्यक्रम का संचालन ब्रह्मचारी विमलभैया ने किया। श्री मंडलोई ने बताया मुनिश्री ने दोपहर में अष्ट पाहुड़ नामक ग्रंथ का स्वाध्याय किया। इसमें देश के विभिन्न क्षेत्रों के 500 लोग शामिल हुए। ग्रंथ का कुछ दिनों स्वाध्याय चल रहा है। शाम को मुनिश्री ने शंका समाधान किया।
संकलन अभिषेक जैन लुहाड़ीया रामगंजमंडी

