पाप कर्म की अनुमोदना भी नकारात्मक परिणाम देती है चीद्रुप भैयाजी


हाटपिपल्या-सांसारिक जीवन में पाप और पुण्य कर्म समय-समय पर उदय होकर फल देते हैं। जन्म-जन्मांतर के शुभ-अशुभ कर्मों का फल भोगना अवश्यंभावी है। पाप कर्म के कर्ता के साथ-साथ ऐसे कर्म की अनुमोदना भी नकारात्मक परिणामों की कारक सिद्ध होती है।
पूर्व संचित पुण्य कर्म के उदय के चलते पाप कर्म का नकारात्मक परिणाम तात्कालिक रूप से न सही, लेकिन कालांतर में अवश्य फलित होता है। हमें सद्कर्म करते हुए पाप बंध से परे रहने की मनोवृत्ति विकसित करने की जरूरत है। ताकि हम आत्मकल्याण की दिशा में अग्रसर रहकर मानव भव को सार्थक सिद्ध कर सके। ये विचार नगर के पार्श्वनाथ जिनालय में अष्टान्हिका पर्व के दौरान आयोजित श्रीसिद्धचक्र महामंडल विधान के अंतर्गत अर्घ्य समर्पण के दौरान बाल ब्रह्मचारी चीद्रुप भैयाजी ने व्यक्त किए। उन्होंने शास्त्र-सम्मत दृष्टांतों के माध्यम से शुभ-अशुभ कर्मों के भेद की सुक्ष्म व्याख्या की। जिन-आगम में वर्णित कर्मों की प्रकृति का आपने प्रभावी विश्लेषण किया। उल्लेखनीय है श्रीसिद्धप्रभु की स्तुति करते हुए विभिन्न इंद्र-इंद्राणी व श्रावक-श्राविकाओं ने ज्यामितीय अनुपात में समर्पित किए जा रहे अनुक्रम में 128 अर्घ्य समर्पित किए।
     संकलन अभिषेक जैन लुहाड़ीया रामगंजमंडी

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