साधु संतों को भगवान की सौम्यता आकर्षित करती है : सुनीलसागरजी



सागवाड़ा-जीवन में सुख-दुख धूप और छांव की तरह मिलते रहते हैं। फूल खिलता है तो उसे पता है अभी खिला हूं लेकिन कब मुरझा जाऊंगा पता नहीं। फूल कहते हैं सदा मुस्कराइए और कांटे कहते है जरा होश में आइए। यह बात रिषभ वाटिका स्थित सन्मति समवशरण सभागार में आचार्य सुनीलसागरजी महाराज ने धर्म सभा को संबोधित करते हुए कही। उन्होंने कहा कि जिनेंद्र भगवान का ध्यान करने से सम्यक ज्ञान प्राप्त होता है। खिले हुए फूल को देखो तो चेहरे पर प्रसन्नता आ जाती है और किसी रोते हुए आदमी को देखो तो हमारे भाव भी उसी तरह के हो जाते है। उसी तरह जब हम भगवान का मुख देखते हैं तो उनकी सौम्य प्रतिमा की मुस्कराहट देख कर हमारा मन प्रभू की भक्ति में रम जाता है। आप रोज उस मनमोहक प्रतिमा का स्मरण कर प्रसन्नचित्त रह सकते हैं। जब भगवान के प्रति भक्ति के भाव आएंगे तो आपके मन में त्याग के भाव भी आएंगे। साधू संतों को भी भगवान की सौम्यता आकर्षित करती है और वह आध्यात्म की ओर आगे बढ़ते हैं, तपस्या करते हैं। आचार्य सन्मतीसागर जी भी एकांतर उपवास करते थे। हमें भी चार दिन में एक उपवास करना ही चाहिए। किसी भी प्रकार की त्याग की भावना से भगवान के प्रति आपकी आस्था और श्रृद्धा दृढ़ होती है। कुछ लोग कहते हैं कि पत्थर की प्रतिमाओं में कोई जान नहीं होती, पर त्यागी वृत्ति उस प्रतिमा में जान डालते है। संस्कारों से इंसान धार्मिक हो सकता है तो पत्थर की मूरत पूजनीय हो जाती है। भगवान महावीर ने 12 वर्ष कठिन तपस्या की। कई मुनि दीक्षा लेते है उनका तप्यचर्य साधना है और जो साध लेता है वो पा लेता है।
खुद का मिलन खुद से करें। शुभमसागरजी
इससे पूर्व मुनि श्री शुभमसागरजी महाराज  ने अपने प्रवचन में कहा कि खुद का मिलन खुद से करें। निज की ओर थोड़ा देखें जिस प्रकार भगवान शांत चित्त बैठे हैं वह सहज है। वैसे सहज साधु संतो की संगति में रहो।
       संकलन अभिषेक जैन लुहाड़ीया रामगंजमंडी

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