गंजबासौदा-मील रोड स्थित महावीर बिहार में मुनि श्री निर्णय सागरजी महाराज व मुनि श्री पद्मसागरजी महाराज ने धर्म सभा को संबोधित करते कहा स्वाध्याय समय काटने के लिए नहीं कर्म काटने के लिए होता है। अभी तक मनुष्य को मिथ्यात्व एवं मोहिनी कर्म के कारण सम्यक दर्शन की प्राप्ति नहीं हो पाई।
जब सम्यक दर्शन की प्राप्ति नहीं हुई तो सम्यक चरित्र को प्राप्त करना असंभव है। श्रावक चरित्र का निर्माण तभी कर सकता है जब उसे सम्यक दर्शन की पहचान अच्छे से हो जाए। अगर जीवन में मिथ्यात्व का अभाव हो और थोड़ा सा भी ज्ञान हो तब सम्यक दर्शन हो जाता है। अथार्थ अपनी आत्मा का सच्चा दर्शन हो जाए तो सम्यक दर्शन हो जाता है। शरीर को हमेशा आत्मा से भिन्न समझना चाहिए। स्वाध्याय के द्वारा अपने समस्त कर्मों की निर्जरा करने पर शरीर से आत्मा भी भिन्न जाती है। सम्यक दृष्टि बनने के लिए किसी भी वस्तु का त्याग करना आवश्यक नहीं है। घर, मकान, दुकान, खेती आदि के साथ रहते हुए भी सम्यक दृष्टि बन सकते हैं। सम्यक दृष्टि जीव कभी विकलांग, निर्धन या दरिद्री नहीं होता। आत्मा की साधना करने वाला आत्म साधक विचार करता है कि मैंने पूरे दिन में क्या-क्या पाप किए हैं, कितनी मायाचारी की है, कितने लोगों से झूठ बोला, कितने लोगों की निंदा की बह अपने पापों का स्मरण कर आत्म निंदा करता है और भगवान से प्रार्थना करता है की में पापों से बच सकूं मेरे द्वारा किसी का अहित न हो संसार की सभी प्राणियों को में क्षमा कर सकूं ऐसी भावना भाता है। अपने स्वयं के कर्मों की निंदा करना यही हमारा सच्चा प्रतिक्रमण है। मुनि श्री ने बताया कि में मार्ग दाता हूं, मोक्षदाता नहीं। मोक्ष तो अपने कर्मों के अनुसार ही प्राप्त होगा।
संकलन अभिषेक जैन लुहाड़ीया रामगंजमंडी
जब सम्यक दर्शन की प्राप्ति नहीं हुई तो सम्यक चरित्र को प्राप्त करना असंभव है। श्रावक चरित्र का निर्माण तभी कर सकता है जब उसे सम्यक दर्शन की पहचान अच्छे से हो जाए। अगर जीवन में मिथ्यात्व का अभाव हो और थोड़ा सा भी ज्ञान हो तब सम्यक दर्शन हो जाता है। अथार्थ अपनी आत्मा का सच्चा दर्शन हो जाए तो सम्यक दर्शन हो जाता है। शरीर को हमेशा आत्मा से भिन्न समझना चाहिए। स्वाध्याय के द्वारा अपने समस्त कर्मों की निर्जरा करने पर शरीर से आत्मा भी भिन्न जाती है। सम्यक दृष्टि बनने के लिए किसी भी वस्तु का त्याग करना आवश्यक नहीं है। घर, मकान, दुकान, खेती आदि के साथ रहते हुए भी सम्यक दृष्टि बन सकते हैं। सम्यक दृष्टि जीव कभी विकलांग, निर्धन या दरिद्री नहीं होता। आत्मा की साधना करने वाला आत्म साधक विचार करता है कि मैंने पूरे दिन में क्या-क्या पाप किए हैं, कितनी मायाचारी की है, कितने लोगों से झूठ बोला, कितने लोगों की निंदा की बह अपने पापों का स्मरण कर आत्म निंदा करता है और भगवान से प्रार्थना करता है की में पापों से बच सकूं मेरे द्वारा किसी का अहित न हो संसार की सभी प्राणियों को में क्षमा कर सकूं ऐसी भावना भाता है। अपने स्वयं के कर्मों की निंदा करना यही हमारा सच्चा प्रतिक्रमण है। मुनि श्री ने बताया कि में मार्ग दाता हूं, मोक्षदाता नहीं। मोक्ष तो अपने कर्मों के अनुसार ही प्राप्त होगा।
संकलन अभिषेक जैन लुहाड़ीया रामगंजमंडी

