धर्म ही दुख को भुलाकर सुख का अनुभव कराता है प्रभात सागर जी



खुरई-मन के उज्जवल भावों ,पवित्र विचारों का नाम धर्म है। तीर्थंकर तात्कालिक होते है, लेकिन धर्म तात्कालिक नहीं होता वह तो त्रिकालिक होता है। जिस प्रकार अंधकार और प्रकाश दोनों इस धरती पर हैं वैसे ही धर्म और अधर्म भी इस धरती पर है। यह बात प्राचीन दिगंबर जैन मंदिर में प्रवचन देते हुए मुनिश्री प्रभात सागरजी  महाराज ने कही।
उन्होंने कहा कि धर्म ही ऐसा है जो दुखः को भुलाकर सुख का अनुभव कराता है। धर्म चक्र कर्म को हनन करने वाला है और धन चक्र मोह को बढ़ाने वाला है। उन्होंने कहा कि जैन धर्म का मूल विस्तार यह है कि वह प्रत्येक आत्माओ को परमात्मा बनाने की क्षमता को बताता है। जो व्यक्ति धर्म के क्षेत्र में उत्साहपूर्वक अपने कदम बढ़ाता है,वह व्यक्ति अपनी यात्रा अल्प समय में पूर्ण कर लेता है। आज धर्म के नाम पर अधर्म का काम किया जा रहा हैं। धर्म के अनुरूप यदि दुनिया चलती है तो धर्ममय सारा वातावरण हो जाता है। धर्म वहां माना जाता है जिसके द्वारा पाप का नाश हो, धर्म की बात करना और धर्म से बात करना इन दोनो में बहुत अंतर है धर्म प्राप्ति के लिए हमें धर्म के पास आना होगा,तब ही हम धर्म को समझ सकते हैं। धर्म का अनुभव किए बिना व्यक्ति धर्मात्मा नहीं बन सकता है जो व्यक्ति उन्मार्ग पर लगा होता है ,उन्हे सन्मार्ग पर लगाना ही धर्म है। अपने आंसू पोंछना धर्म नहीं है, दूसरो के आंसू पौंछना ही धर्म है।
      संकलन अभिषेक जैन लुहाड़ीया रामगंजमंडी

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