कर्मों की निर्जरा से आत्मशुद्धि होगी सौम्यनन्दिनी माताजी



कोटा-महावीर नगर विस्तार योजना दिगंबर जैन मंदिर में चल रहे आर्यिका  सौम्यनन्दिनी माताजी ने शनिवार को प्रवचन करते हुए कहा कि विनय के तीन  साध्य हैं। नमन और झुकना एक जैसा नहीं है। इसलिए विनम्र बनो, कोमल बनो।  शरीर की शुद्धि पानी, अग्नि, मिट्टी आदि से होती है। जहां धर्म है, वहां  शुद्धि है। उन्होंने कहा कि मन का सरल होना जरूरी है। क्योंकि माया से  मित्रता का नाश होता है। जैन धर्म में तप को मोक्ष का मार्ग बताया गया है।  अगर कर्मों की निर्जरा होगी तो आत्म शुद्धि होगी। तप के माध्यम से मन, वचन,  काया आदि तीन योग को एकाग्र किया जाता है।
         संकलन अभिषेक जैन लुहाड़ीया रामगंजमंडी

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