कृष्ण की बांसुरी भीतर से पोली होती है, उसमें जरा भी अहंकार नहीं है: आचार्य पुष्पदंत सागर जी



सोनकच्छ-जन्माष्टमी का सूरज नई प्रेरणा देता है, कृष्ण का जन्म भयंकर अंधकार और तूफान के बीच हुआ और कारागार उनका स्थल बना। जहां प्रतिकूलता-विषमताओं की पराकाष्ठा थी। जीवन के प्रथम चरण से ही आपदाओं का सामना किया। कृष्ण के छह दुश्मन थे कंश अन्याय प्रेमी था, दुर्योधन अनीती का रसिक था, जरासंघ अहंकार का जीता जगता प्रेत था, नरकासुर राक्षसी वर्ती का देव था, पूतना माया का, छल का जाल लेकर आई थी और कालिया नाग यमराज का रूप धरकर आया था। कृष्णा हर चुनौती का निष्प्रहता से सामना करते रहे। कृष्ण की सबसे बड़ी विशेषता थी कि सत्ता और सम्पदा के बिना हंसकर सहज अन्याय अत्याचार को समाप्त किया। यह बात पुष्पगिरि तीर्थ प्रणेता आचार्य पुष्पदन्त सागर जी महाराज ने अपने प्रातः कालीन अध्ययन में शिष्य मुनि प्रसन्न सागर,जी पीयूष सागरजी  व पर्व सागरजी  महाराज के साथ उपस्थित भक्तों से कही। उन्होंने कहा, कृष्ण ने प्रतिकूलता में भी हंसकर जीने की प्रेरणा दी आप भी उनसे प्रतिकूलता में हंसकर जीवन जीना सीखें। कृष्ण की बांसुरी भीतर से पोली है। उसमें जरा सा भी अहंकार, ममकार व इच्छाओं का कचरा नहीं है। तभी तो बांसुरी बजती और मीरा नाचती है। आप भी अहंकार ममकार से रिक्त बनो, जिससे देह की बांसुरी परमात्मा के गीत गा सके और सुना सके। परमात्मा बनने के लिए निर्मल आत्मा चाहिए। छल कपट से परे जीवन जिओ और ऊपर उठो, तभी जन्म की सार्थकता है।
            संकलन अभिषेक जैन लुहाड़ीया रामगंजमंडी

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