जरुरत से ज्यादा आशान्वित होकर काम करने वाला भी दुख भोगता है : आचार्य श्री सुनील सागर जी



सागवाड़ा-आचार्य सुनील सागरजी  महाराज ने मंगलवार को ऋषभ वाटिका स्थित सन्मति समवशरण सभागार में प्रवचन में कहा कि जीवन में दुख और सुख व्यक्ति की बढ़ती आकांक्षाओं और इच्छाओं पर निर्भर करता है। आचार्य ने कहा कि मन, वचन और काया के साथ आठ कर्म और 148 प्रवृत्तियां हैं फिर भी मन में जितने भाव होते हैं कर्म भी उसी के अनुसार होते हैं। कभी-कभी ज्ञान की परिपक्वता नहीं होने और जरूरत से ज्यादा आशान्वित होकर कर्म करने वाला भी दुख को भोगता है। आचार्य ने कहा कि आत्मा चेतन है तथा शरीर नश्वर और अचेतन है, शरीर और आत्मा का अलग-अलग स्वरूप है। ऐसे में जिसे आत्म शुद्धि और चित्त शुद्धि का वास्तविक बोध हो जाता है उसके लिए सुख तथा दुख का महत्व ही समाप्त हो जाता है। सम्यक दृष्टि से दुख का अनुभव नहीं होता है । आईएस अवसर पर  मुनिश्री  सुशांत सागर जी  महाराज द्वारा अंग्रेजी भाषा में अनुवादित पुस्तक तत्वार्थ सूत्र का विमोचन किया गया।
      संकलन अभिषेक जैन लुहाड़ीया रामगंजमंडी

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