खुरई -व्यक्ति को कभी भी अपने ज्ञान, पूजा-भक्ति, कुल, जाति, बल, ऋद्धि-सिद्धियों, तप एवं रूपवान शरीर पर अहंकार नहीं करना चाहिए। अहंकारी व्यक्ति धार्मिक क्षेत्र एवं गृहस्थ जीवन में कभी सफल नहीं हो सकता। जिसके मन में विनय होती है वह ही अपनी मंजिल प्राप्त कर सकता है। यह बात प्राचीन जैन मंदिर में प्रवचन देते हुए मुनिश्री अभय सागर जी महाराज ने कही।
उन्हाेंने कहा कि जिस पदार्थ के सुख की चाह में भाग रहे हो, वह तुम्हें सुख नहीं दे सकता। हां, पदार्थ के संग्रह के बल पर तुम कुछ साधन जुटा सकते हो। साधन से सुविधा मिल सकती है, सुख नहीं मिल सकता। सुख पाने के लिए साधन नहीं साधना करना पड़ेगी। ध्यान रखना, सुविधा जुटाई जा सकती है, सुख नहीं।
वह तो अर्जित किया जाता है, जो हमारे भीतर से प्रकट होता है, वह साधना के फलस्वरूप प्राप्त होता है। जो व्यक्ति जितनी गहरी साधना में लीन होता है,उसका जीवन उतना अधिक सुखी हो जाता है। और जो व्यक्ति जितना अधिक संसाधनों में उलझा रहता है, वह भले ही सुख-सुविधाओं से घिरा रहे, लेकिन उसका जीवन सुखी नहीं बन पाता। ध्यान रखना, सुविधाओं के मध्य कई बार तुम स्वयं को सुखी महसूस करते हो, लेकिन तुम्हारी सुविधा ही तुम्हारे जीवन की सबसे बड़ी दुविधा बन जाती है। इसलिए सुविधाओं की तरफ तुम्हारी दृष्टि नहीं होना चाहिए, सुख की तरफ दृष्टि होना चाहिए। परमार्थ की ओर दृष्टि होना चाहिए, जो तुम्हारे भीतर से उपजता है। उन्हाेंने कहा कि पैसे से तुम रोटी खरीद सकते हो पर भूख नहीं।
पैसे से बिस्तर लगाया जा सकता है पर नींद नहीं। पैसे से दवाई इकट्ठी की जा सकती है पर आरोग्य की अनुभूति नहीं की जा सकती। पैसे से मकान बनाया जा सकता है, पर आराम नहीं पाया जा सकता। पैसे से चश्मा खरीदा जा सकता है, पर दृष्टि नहीं। पैसे से प्रसाधन की सामग्री लाई जा सकती है पर सौन्दर्य नहीं।
संकलन अभिषेक जैन लुहाड़ीया रामगंजमंडी
उन्हाेंने कहा कि जिस पदार्थ के सुख की चाह में भाग रहे हो, वह तुम्हें सुख नहीं दे सकता। हां, पदार्थ के संग्रह के बल पर तुम कुछ साधन जुटा सकते हो। साधन से सुविधा मिल सकती है, सुख नहीं मिल सकता। सुख पाने के लिए साधन नहीं साधना करना पड़ेगी। ध्यान रखना, सुविधा जुटाई जा सकती है, सुख नहीं।
वह तो अर्जित किया जाता है, जो हमारे भीतर से प्रकट होता है, वह साधना के फलस्वरूप प्राप्त होता है। जो व्यक्ति जितनी गहरी साधना में लीन होता है,उसका जीवन उतना अधिक सुखी हो जाता है। और जो व्यक्ति जितना अधिक संसाधनों में उलझा रहता है, वह भले ही सुख-सुविधाओं से घिरा रहे, लेकिन उसका जीवन सुखी नहीं बन पाता। ध्यान रखना, सुविधाओं के मध्य कई बार तुम स्वयं को सुखी महसूस करते हो, लेकिन तुम्हारी सुविधा ही तुम्हारे जीवन की सबसे बड़ी दुविधा बन जाती है। इसलिए सुविधाओं की तरफ तुम्हारी दृष्टि नहीं होना चाहिए, सुख की तरफ दृष्टि होना चाहिए। परमार्थ की ओर दृष्टि होना चाहिए, जो तुम्हारे भीतर से उपजता है। उन्हाेंने कहा कि पैसे से तुम रोटी खरीद सकते हो पर भूख नहीं।
पैसे से बिस्तर लगाया जा सकता है पर नींद नहीं। पैसे से दवाई इकट्ठी की जा सकती है पर आरोग्य की अनुभूति नहीं की जा सकती। पैसे से मकान बनाया जा सकता है, पर आराम नहीं पाया जा सकता। पैसे से चश्मा खरीदा जा सकता है, पर दृष्टि नहीं। पैसे से प्रसाधन की सामग्री लाई जा सकती है पर सौन्दर्य नहीं।
संकलन अभिषेक जैन लुहाड़ीया रामगंजमंडी