वंश और वेशभूषा से नहीं, पहचान तो आचरण और व्यवहार से होती हैं : मुनि समता सागरजी


घाटोल-कस्बे के वासुपूज्य दिगंबर जैन मंदिर प्रांगण में बुधवार को धर्मसभा को संबोधित करते हुए मुनिश्री  समता सागरजी महाराज ने कहा कि किसी के वस्त्र फटे पुराने और मेले है तो इसका मतलब यह नहीं की उसका मन भी मेला और काला है। यह जरूरी नहीं की गोरा शरीर सफेद वस्त्र पहनने वाला उतना ही साफ हो इन दोनों में बहुत विरोधाभास पाया जाता है वही उन्होंने रामचरित्र का वर्णन करते हुए कहा कि श्रीराम का व्यक्तित्व और व्यवहार ऐसा रहा जो आज भी सभी के लिए प्रेरणा पथ बना हुआ है इसलिए धर्म संप्रदाय में उन्हें श्रद्धा का स्थान मिला वही सभा में ऐलक श्री  निश्चय सागरजी महाराज ने कहा कि शास्त्रों के विभिन्न उदाहरण देकर यह सिद्ध किया की  धर्म सिर्फ शास्त्र और मंदिर तक ही सीमित नही है। घर परिवार ओर समाज से भी जुड़ा हुआ है। परिस्थितियों में साधर्मी बंधुओं का कल्याण नही कर पाया तो फिर यह अपने जीवन का लक्ष्य अधूरा ही रह जाएगा।
      संकलन अभिषेक जैन लुहाड़ीया रामगंजमंडी

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