खुरई-मुनिश्री प्रभात सागर जी महाराज ने प्रवचन देते हुए कहा कि तार को केवल एक तरफ खींचते चले जाओगे, तो तार टूट जाएगा और जब तारों को एक निश्चित सीमा में खींचोगे और तब हाथ को चलाओगे तो वह सितार बन जाएगा। सामने वाले का ध्यान रखना चाहिए। अनेकांत सामंजस्य की ही बात करता है, संघर्ष की नहीं। अनेकांत हमें प्रेरणा देता है कि सामने वाले से विरोध नहीं अविरोध बनाकर चलें। सामंजस्य होना चाहिए। चाहे मामला पति-पत्नी के संबंध का हो या पिता-पुत्र के संबंध का। भाई-भाई के संबंध की बात हो या चाहे समाज की बात हो या देश की बात हो एडजस्टमेंट होना चाहिए, ऐसा होना बहुत जरूरी है। उन्होंने कहा कि सितार से संगीत कब फूटता है जब सातों तारों में आंतरिक सामंजस्य होता है। सात तार अलग-अलग होते हैं लेकिन इसके बावजूद उन सातों तारों में आंतरिक सामंजस्य बना रहता है। सामंजस्य होगा तो संगीत होगा। यदि सामंजस्य नहीं है तो सिरदर्द होगा। यदि आपने अपने जीवन को सामंजस्य से जीने की कला सीख ली तो आपके जीवन में सदैव मधुर संगीत प्रस्फुटित होगा।
संकलन अभिषेक जैन लुहाड़ीया रामगंजमंडी

