कुण्डलपुर -धर्म में शास्त्रों का विस्तार समता के लिए है। साम्य मात्र ही उत्कृष्ट ध्यान है। केवल्यज्ञान को प्रकट कराकर मोक्ष को दिलाने वाला है। मोहनीय कर्म के उदय में समता नहीं आ पाती है। श्रमण संत सदैव समता में लीन रहते हैं। स्वाध्याय की सार्थकता तभी है जब मनुष्य समता के साथ स्वयं में प्रवेश करता है। संसारी प्राणी को समता के अभाव एवं वेदनीय और मोहनीय कर्म के उदय से निरंतर आकुल व्याकुल होता रहता है। साम्य भाव या समता को प्राप्त करने के लिए बहुत साधना की आवश्यकता होती है। संसार में इष्ट.अनिष्ट की कल्पना मोह के कारण होती रहती है। ये उदगार निर्यापक मुनि श्री समय सागर जी महाराज ने रविवार को अपने मंगल प्रवचनों में कुण्डलपुर के विद्याभवन में अभिव्यक्त किए।
मुनि श्री ने अपने मंगल प्रवचनों में आगे कहा आत्मा तो स्वर्ण की तरह शुद्ध होती है किंतु जिस तरह अग्नि से स्वर्ण को तपाने पर वह शुद्ध होता है उसी तरह आत्मा के विकारों को अलग करने के लिए वीतरागता की अग्नि में तपाना पड़ता है। आत्मा के कल्याण के लिए उसके कर्मों को घटाने के लिए शुक्ल ध्यान की अग्नि से उसे तपाना तो पड़ेगा। चाहे उसे अभी इस भव में करो अथवा आगे के 8-10 भवों में करो। कर्मों की निर्जरा के लिए आगमानुसार धार्मिक क्रिया से संसार से पार हुआ जा सकता है। जो संल्लेखना पूर्ण साधक समाधि ग्रहण करता है वह शीघ्र ही मुक्ति को प्राप्त कर लेता है। इन सभी धार्मिक क्रियाओं से आत्मा को उन्नत कर मोक्ष प्राप्त किया जा सकता है। यह जानकारी कमेटी प्रचार मंत्री सुनील वेजेटेरियन,ने दी
संकलन अभिषेक जैन लुहाड़ीया रामगंजमंडी
मुनि श्री ने अपने मंगल प्रवचनों में आगे कहा आत्मा तो स्वर्ण की तरह शुद्ध होती है किंतु जिस तरह अग्नि से स्वर्ण को तपाने पर वह शुद्ध होता है उसी तरह आत्मा के विकारों को अलग करने के लिए वीतरागता की अग्नि में तपाना पड़ता है। आत्मा के कल्याण के लिए उसके कर्मों को घटाने के लिए शुक्ल ध्यान की अग्नि से उसे तपाना तो पड़ेगा। चाहे उसे अभी इस भव में करो अथवा आगे के 8-10 भवों में करो। कर्मों की निर्जरा के लिए आगमानुसार धार्मिक क्रिया से संसार से पार हुआ जा सकता है। जो संल्लेखना पूर्ण साधक समाधि ग्रहण करता है वह शीघ्र ही मुक्ति को प्राप्त कर लेता है। इन सभी धार्मिक क्रियाओं से आत्मा को उन्नत कर मोक्ष प्राप्त किया जा सकता है। यह जानकारी कमेटी प्रचार मंत्री सुनील वेजेटेरियन,ने दी
संकलन अभिषेक जैन लुहाड़ीया रामगंजमंडी

