शाहगढ़-बोली वाणी ही शांति और अशांति का माहौल बनाती है। तीन इंच की यह जीभ सज्जन और दुर्जन दोनों के पास है लेकिन इस जीभ को रसना और वाणी बोलने में शांत करना भी एक साधना है। यह बात आर्यिकाश्री प्रशांतमती माताजी ने रविवारीय धर्मसभा में कही उन्होंने कहा कि इस जीव की जीभ ही नर्क और स्वर्ग का मार्ग तैयार करती है लेकिन दोष हम दूसरों को देते हैं। शांत वातावरण में प्रतिकूलता से अनुकूलता बनाने आप खुद जिम्मेदार हैं जो अशांति का अनुभव करता है इसका मतलब है वह अतीत का अनुभव कर रहा है।
आर्यिकाश्री ने कहा कि शांति के माहौल वाले घर को स्वर्ग की उपमा दी गई है अगर घरों में अशांति लड़ाई का वातावरण बना रहे तो लोग कहते हैं कि देखो कैसे नारकी जैसे लड़ रहे हैं। आर्यिकाश्री ने एक दृष्टांत देते हुए कहा कि सुनार और लुहार की दुकानें आमने-सामने है लेकिन लोहा पिटते समय आवाज करता है तो इस संबंध में जब सोने ने लोहा से पूछा तो वह बोला कि मैं अपने सगे भाई यानी लोहे से पिटता हूं इसलिए पीड़ा ज्यादा होती है लेकिन तुम्हारे साथ ऐसा नहीं है। आर्यिकाश्री ने कहा कि दुख अपने सगे से होता है परायों से कम होता है इसलिए कहा गया है कि बोली ऐसी बानी बोलिए मन का आपा खोय औरन को शीतल करे खुद भी शीतल होय। अंत में आर्यिकाश्री ने कहा कि हमारी वाणी ही नर्क और स्वर्ग का मार्ग तैयार करती है लेकिन दोष हम दूसरों को देते हैं अंत में हमारा यही कहना है कि वाणी का प्रयोग ऐसा करें कि किसी को ठेस ना पहुंचे कलह न बने दोष दूसरों में न देखें दोष खुद मैं देखें इस संसार से जाना सभी का तय है कहां जाना है यह तय नही है जो इस जीव की जीभ (वाणी) के जरिए ही तय होगा।
महोत्सव पर चढ़ाया गया निर्वाण लाडू
शीतलनाथ भगवान के निर्वाण महोत्सव पर त्रिमूर्ति जिनालय में रविवार की सुबह से अभिषेक पूजन शांति धारा निर्वाण कांड के बाद सामूहिक रूप से निर्वाण लाडू अर्पित किया कार्यक्रम के बाद विद्यासागर जी संघ की ओर से पूजन में शामिल बच्चों को प्रसाद फलाहार का भी वितरण किया गया।
संकलन अभिषेक जैन लुहाड़ीया रामगंजमंडी

