देश के प्रथम नागरिक राष्ट्रपति महामहिम रामनाथ कोविंद का जन्म 1 अक्टूबर 1945 को उत्तर प्रदेश के परौंख ( कानपुर ) में हुआ । बचपन में 'रामू' और 'लल्ला" के नाम से जाने जाने वाले कोविंद अपने 9 भाई-बहनों में सबसे छोटे और सब के लाडले थे, गांव में ही किराने की दुकान चलाने वाले और फेरी लगाकर कपड़े बेचने वाले के पुत्र का जीवन बड़े ही संघर्षों में बीता । खिलौनों से खेलने की उम्र महज 5 साल में ही घर में आग लगने के कारण कोविंद के सिर से मां के प्यार का साया हमेशा के लिए छिन गया । बचपन से ही पढ़ाई में अव्वल रहने वाले कोविंद का मन पढ़ाई - लिखाई में खूब लगता था, पांचवी तक गांव के ही सरकारी स्कूल में पढ़ने वाले रामू ने भंडार घर को ही अपना स्टडी रूम बना लिया । गरीबी उनकी पढ़ाई में कभी रोड़ा ना बने इस बात का ख्याल उनके पिताजी ने रखा। कोविंद ने 12वीं की परीक्षा बीएनएसडी इंटर कॉलेज कानपुर से पास किया, कानपुर के डीएवी कॉलेज से कोविंद ने वाणिज्य में स्नातक तथा वकालत की पढ़ाई पूरी की , ये वही डीएवी कॉलेज है जिसने देश को प्रधानमंत्री (अटल बिहारी वाजपेई) और राष्ट्रपति ( रामनाथ कोविंद ) दोनों ही दिए हैं । कोविंद के मुताबिक घास फूस की छत और मिट्टी की चारदीवारी में अपने परिवार के साथ रहने वाले सभी भाई-बहन बारिश के समय छत से टपकते पानी से बचने के लिए दीवार के सारे चिपक कर खड़े होकर बारिश थमने का इंतजार करते थे । गोविंद के पिता अपने राम के सपनों को उड़ान देना चाहते थे इसीलिए उन्होंने अपनी पैतृक जमीन बेचकर आगे की पढ़ाई के लिए दिल्ली भेज दिया ।
राजनीति में उनकी दिलचस्पी इतनी थी कि पिताजी के साथ पंचायत में जाया करते थे, पढ़ाई में अव्वल रहने वाले कोविंद को तीसरे प्रयास में सिविल सेवा में कामयाबी मिली लेकिन कम अंक होने के कारण अलाइड सेवा मिली जिसे कोविंद ने ठुकरा दिया और वर्ष 1971 में बार काउंसलिंग दिल्ली में रजिस्टर्ड होकर सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट में 16 वर्ष तक वकालत करते रहे । राष्ट्रपति के लिए छुपे रुस्तम निकले राम ने कभी जीवन में कल्पना भी नहीं की थी कि 1 दिन दुनिया के सबसे गणतंत्र के नाथ होंगे । कोविंद 1977 में पूर्व प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई के विशेष कार्यकारी अधिकारी रह चुके हैं । 1991 में आरएसएस में आस्था रखने वाले कोविंद ने घाटमपुर से भाजपा के उम्मीदवार के रूप में विधानसभा चुनाव लड़ा लेकिन हार का मुंह देखना पड़ा , जब जनता ने उन्हें अस्वीकार कर दिया तो पार्टी ने उनकी कार्यक्षमता का पुरस्कार दो बार राज्यसभा में भेज कर दिया इतना ही नहीं 2 वर्ष पूर्व में बिहार में राज्यपाल जैसे अहम ओहदे पर बिठा दिया । कोविंद लगातार संघर्ष से निकलकर शिखर की ओर बढ़ रहे थे , राजनीति के चाणक्य मोदी-शाह की जोड़ी ने दलित के रूप में गोविंद के रूप में राजनीति के इस खेल में तुरप का इक्का चलकर विपक्ष को चारों खाने चित कर दिया ।
पढ़ाई में इतनी लग्न थी कि घर से 8 किलोमीटर दूर पैदल स्कूल जाते थे, कानपुर में रहकर पढ़ाई करते वक्त पिता की माली हालत पर और प्रभाव न पड़े इसके लिए कोर्ट में स्टेनो की नौकरी करना प्रारंभ कर दिया था । 9 भाई-बहनों में सबसे छोटे होने के कारण प्यार से लल्ला पुकारा जाता था और प्यार की बरसात होती थी । बताया जाता है कि जब तक बड़ी बहन खाना परोस कर नहीं देती थी तब तक खाना नहीं खाते थे चाहे फिर भूखा ही क्यों न सोना पड़े । संपत्ति के नाम पर कुछ ना रखने वाले कोविंद ने 1999 में परौंख का पुश्तैनी घर पंचायत को बरात घर के लिए दान कर दिया ।
शिक्षा ,उम्र और राजनीतिक अनुभव में खुद से आगे रहने वाली प्रतिद्वंदी प्रत्याशी मीरा कुमार को कोविंद ने 334000 मतों से पटखनी देकर ,कुल मतों में अभी तक के मात्र 4 राष्ट्रपति से आगे रहे हैं । कोविंद को एनडीए के अलावा अन्य विपक्षी दलों से क्रॉस वोटिंग हुई गुजरात और गोवा ,महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल ,त्रिपुरा और दिल्ली में कोविंद को उम्मीद से ज्यादा साथ मिला तो राजस्थान में भाजपा के 10 एमएलए ने कांग्रेस की मीरा को वोट देकर उनका मूल्य बढ़ाया । गुजरात में कांग्रेस से हाल ही में बागी हुए बाघेला के समर्थक विधायकों ने मीरा की वजाय राम को अपना नाथ बनाया ,यहां कोविंद को 132 वोट मिले तो मीरा को 49 जबकि राज्य में कांग्रेस के 57 विधायक हैं स्पष्ट है आठ विधायक अपनी ही पार्टी से बगावत कर बैठे । दिल्ली में भी आप के कुछ विधायकों ने कोविंद को वोट दिए तो पश्चिम बंगाल में दीदी का समर्थन मीरा को मिलने के कारण 273 वोट मिले तो पांच विधायक कोविंद के साथ हो लिए, त्रिपुरा भाजपा के विधायकों की संख्या शून्य हैं फिर भी कोविंद को मिले 7 वोटों ने साबित कर दिया कि राजनीति में कोई किसी का सगा नहीं होता है , महाराष्ट्र भाजपा शिवसेना के 185 विधायक हैं और 208 के आंकड़े को छू लिया और उत्तर प्रदेश में भी मीरा के अपने-अपने नहीं रहे । अपने भाग्य में राजयोग लिखवा कर लाने वाले रामनाथ कोविंद का राजनीतिक सफर कुछ खास नहीं है और जनता तो छोड़िए राजनीति की जानकारी रखने वाले कम ही लोग कोविंद के नाम से परिचित होंगे । महामहिम राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की जीवन यात्रा न केवल संघर्षमय रही बल्कि एक सामान्य से परिवार से चलकर राष्ट्रपति भवन तक की यात्रा हम सबके लिए प्रेरणा दायक भी है ।
( ये लेखक के निजी विचार और विभिन्न स्रोतों से प्राप्त जानकारी पर आधारित है )
( ये लेखक के निजी विचार और विभिन्न स्रोतों से प्राप्त जानकारी पर आधारित है )
-- इंजी. वीरबल सिंह "वीर"
( लेखक एवं कवि )
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