मानवीय इयता को अम्रतस्रोंतवाही श्रमण संस्क्रती के सहस्त्रदल कमल की सुरभि के साथ असतो मा सद्गमय, तमसो मा ज्योतिर्गमय, मृत्योर्मा अमृतंगमय के ऊर्जस्वी चिंतन को व्यवहारिक कर्मस्थली भारत भूमि, अजनाभखंड, की असंख्य कीर्ति- रश्मियो को भोतिक सक्रांति के गहन क्षणो मे विस्तीर्ण करते हुये एकांत एक्रांग और संयमी जीवन की विलक्षण मानवीय प्रतीति बन, एक संकल्पशील साधक के रूप मे जब आचार्य 108 श्री ज्ञानसागरजी महाराज लोकजीवन मे अवतरित हुए, तो यह धरती उदभासित हो गयी उनकी तपस्या की प्रभा और त्याग की क्रांति से होने लगी स्फुरिता पुनः जाग्रत, जन गण मण की अधिभोतिक अधिदैविक एवं आध्यात्मिक शक्तियां।
इस आर्यावंत की गंगा तटवर्तिनी भूमि को देवत्व प्रदान करने वाले ज्ञान, भक्ति और वैराग्य की त्रिवेणी मे अवगाहन कराने वाले इस क्रांतिकारी संत ने अपने जीवन को क्रतार्थ करते हुये त्याग, तितिक्षा और वैराग्य की सास्क्रातिक धरोहर के धनी तीर्थंकरो की पावन पुनीत श्रंखला को पुष्पित और पल्लवित किया है। दिगंबर मुनि परंपरा की एक अत्यंत महत्वपूर्ण और प्रभावशाली कड़ी के रूप मे आपने अपने आभामंडल समग्र मानवीय चेतना को एक अभिनव सद्रष्टि दी है और संवाद की नयी वर्णमाला की रचना करते हुये उन मानवीय आख्यों की संस्थापना की है, जिनमे एक तपस्वी के विवेक, एक योगी के संयम और एक युग चेतना की युगान्तरकारी क्रांतिदर्शी द्रष्टि की त्रिवेणी का समवाय है ऐसी दिव्य चाक्षुष- तुरीय द्रष्टियुक्त ऋतंभरा प्रज्ञा के मूर्तिमान स्वरूप आचार्य श्री की उपदेश वाणी प्रत्येक मनुष्य को झंक्रत कर सकी है क्योकि वह अंतः स्फूर्त है और है सहज तथा सामान्य उहापोह से मुक्त सहजग्राहय और बोधग्म्यः जो मनुष्य के अर्थ ज्ञान और पाण्डित्य के अहंकार से मुक्त कर मानवीय सदभाव का पर्याय बनाने मे सतत प्रव्रत है
एक जीवन सर्जक और आचारनिष्ठ साधक के रूप मे आगम प्रमाण्य से उदभूतः निर्मल ज्ञान की परंपरा कॉ विश्वमंच पर संस्थापित करने वाले वाले सूर्यकोटी समप्रभ स्वरूप इस साधक ने अपनी तपस्या ज्ञानराधना से शास्त्रानुशासन सदुपदेश से संकल्पशील आत्मसाधना को कालजयी के रूप मे प्रतिष्ठित किया है जहा एक और उनके जनकल्याणी विचार जीवन को आत्यंतिक गहराईयो अनुभूतियों और वात्सल्य के संचार से मानवीय चिंतन का सहज परिष्कार करते है तो दूसरी और उनके जीवन को उस सहज सरल और सुबोध महाकाव्य की सरलता के साथ जनसामन्य मे सम्प्रेषीत कराते है जिसमे नानापुराण निगमागम सम्मत मत मतांतर और जिनागम के शाश्वत दार्शनिक मानदंडॉ का गोमुख से निकली गंगा के पवित्र पावन नीर क्षीर सा समवाय है जो अन्यत्र डीयूआरएलएबीएच है हजारो वर्षो की सास्क्रातिक और आध्यात्मिक परम्पराओ के परिशीलन के अनंतर उदित हुए देदीप्यमान मार्तण्डमय आचार्य श्री अपनी आध्यात्मिक शक्तियों के प्रभाव से जहा एक और अज्ञान कालुष्य राग द्वेष मोह ममता की मरीचिका एवं द्वन्दात्म्कता तथा एकांतिकता के निशीधान्धकार की इति करते है जीवन मे व्याप्त जड़ता का समापन करते है और निर्मल ज्ञान की रश्मियों को उद्भाषित करते है वही दूसरी और भक्तो के प्रति उनके वात्सल्यभाव से आप्लावित आशीष सुरभि की स्निग्ध्ता अंतस की उदारता और कोमलता कलियुगी जीवो के त्राण के लिये सुरसुरी की धारा सी सतत प्रवहमान रहती है
संकलन अभिषेक जैन लुहाड़ीया रामगंजमंडी
आविर्भाव एक संकल्पशील साधक का
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Saturday, October 12, 2019
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