सागवाडा-आचार्य सुनील सागर जी महाराज ने मंगलवार को ऋषभ वाटिका स्थित सन्मति समवशरण सभागार में प्रवचन में कहा कि देश, समाज और परिवार के बारे में सोच-विचार कर निर्णय से अच्छे परिणाम प्राप्त कर सकते हैं वहीं प्रेम, समर्पण, सद्भावना तथा उचित-अनुचित आदि पर गहन चिंतन से श्रेष्ठ विकल्पों की ओर आगे बढ़ा जा सकता है।
आचार्य ने कहा कि किसी भी व्यवस्था वचन वस्तु तथा क्रियाओं के बारे में वस्तुनिष्ठ स्थिति, उसकी गहनता तथा उपयोगिता ज्ञात करनी हो तो चिंतन करना बहुत ज़रूरी है। जीवन में चिंतन से ही सिद्धता को हासिल किया जा सकता है। हमें लगता है हमें चाहने वाले बहुत है, गौर से देखा तो पता चला कि चाहते उतना ही हैं जितनी उनको हमारी जरूरत है। यह कमाल की बात नहीं बल्कि चिंतन की बात है, क्योंकि वास्तव में मानव जीवन में उलझने के बजाय सुलझने के मार्ग पर चलना ज्यादा बेहतर है। उलझन और समस्याओं के भंवर में फंसकर मूल तत्व और लक्ष्य से भटका जाता है। लुभावने तथा आकर्षण भावों के भीतर स्वार्थ और स्वहित छिपे हुए होते हैं। उन्होंने वर्तमान परिस्थितियों के मद्देनजऱ कहा कि न तो ऑफर और न ही उपहार विश्वसनीयता ही श्रेष्ठ व्यापार है। इसी तरह से जीवन में चरित्र,कर्म और कर्तव्य से उत्कृष्टता के साथ विश्वसनीय उच्च व्यक्तित्व का निर्माण किया जा सकता है। आचार्य ने कहा कि अंतरंग मन में प्रसन्नता तथा शांति के साथ मुस्कान वास्तविक जीवन की पहचान है। मुस्कान की खुशबू से कर्म वचन के साथ ही जीवन की सार्थकता को प्राप्त किया जा सकता है। आचार्य के प्रवचन से पूर्व धर्मसभा को मुनि श्री सुकुमाल सागर जी महाराज ने संबोधित कर जैन शास्त्र के सिद्धान्त ग्रंथ और मुलाचार में वर्णित जीव पर्याय के मूल तत्व को समझाया।
संकलन अभिषेक जैन लुहाड़ीया रामगंजमंडी

