सागवाड़ा-आचार्य सुनील सागर जी महाराज ने शनिवार को ऋषभ वाटिका स्थित सन्मति समवशरण सभागार में प्रवचन में कहा कि जिनका आचार-विचार अशुद्ध होता है, वो दूसरों की प्रगति और विकास को सहन नहीं कर सकता। जिसके शुद्ध भाव और सम्यकदृष्टि होती है, वे किसी भी परिस्थितियों में विचलित नहीं होकर सर्व आनंद को प्राप्त कर दूसरों की ख़ुशी से भी खुश रहते हैं।
किसी अन्य की सुख सुविधा, ऊंचाइयों, संपन्नता और वैभव को देखकर मन में ईष्र्या और जलन के भाव रखना गलत है। क्योंकि जिसका अच्छा समय चल रहा हो वहां उसके पुण्य कर्म से भाग्योदय होना स्वाभाविक है। सच्ची साधना, धर्म के प्रति निष्ठा और परोपकारी कार्यों के साथ शांत मन से किए गए सद्कार्यों से किसी भी व्यक्ति का सफल होना तय है। इसलिए बड़ों को देखकर बढ़ो, छोटों को देखकर जियो। बड़े की श्रेष्ठता और छोटे के अभावग्रस्त जीवन में जो सहनशीलता है उससे बहुत कुछ सीखा जा सकता है । आचार्य ने कहा कि अपने आप को पहचान कर आत्मा तथा देह के अस्तित्व को जानना जरूरी है क्योंकि दृष्टि की गहनता ही सोच की तासीर बनाती है। सांसारिक जीवन में रिश्तों की अहमियत होती जरूर है मगर रिश्ते अस्थिर होते हैं। जन्म देने वाली मां और पिता जीवन भर साथ में नहीं रहते। वहीं समय-समय पर रिश्ते बनते, टूटते और छूटते रहते हैं। मोह माया और लोभ के साथ विकार बढ़ते जाते हैं। जबकि निर्विकार और निर्मोही जीवन निर्मल शांति प्रदान करता है, यह सबसे बड़ी वास्तविकता है।
संकलन अभिषेक जैन लुहाड़ीया रामगंजमंडी
किसी अन्य की सुख सुविधा, ऊंचाइयों, संपन्नता और वैभव को देखकर मन में ईष्र्या और जलन के भाव रखना गलत है। क्योंकि जिसका अच्छा समय चल रहा हो वहां उसके पुण्य कर्म से भाग्योदय होना स्वाभाविक है। सच्ची साधना, धर्म के प्रति निष्ठा और परोपकारी कार्यों के साथ शांत मन से किए गए सद्कार्यों से किसी भी व्यक्ति का सफल होना तय है। इसलिए बड़ों को देखकर बढ़ो, छोटों को देखकर जियो। बड़े की श्रेष्ठता और छोटे के अभावग्रस्त जीवन में जो सहनशीलता है उससे बहुत कुछ सीखा जा सकता है । आचार्य ने कहा कि अपने आप को पहचान कर आत्मा तथा देह के अस्तित्व को जानना जरूरी है क्योंकि दृष्टि की गहनता ही सोच की तासीर बनाती है। सांसारिक जीवन में रिश्तों की अहमियत होती जरूर है मगर रिश्ते अस्थिर होते हैं। जन्म देने वाली मां और पिता जीवन भर साथ में नहीं रहते। वहीं समय-समय पर रिश्ते बनते, टूटते और छूटते रहते हैं। मोह माया और लोभ के साथ विकार बढ़ते जाते हैं। जबकि निर्विकार और निर्मोही जीवन निर्मल शांति प्रदान करता है, यह सबसे बड़ी वास्तविकता है।
संकलन अभिषेक जैन लुहाड़ीया रामगंजमंडी

