आचार्य श्री विद्यासागरजी महाराज का 23 साल बाद सिद्धवरकूट में ससंघ हुआ मंगल प्रवेश



सिद्धवरकूट -आचार्य श्री विद्यासागरजी महाराज का अपने संघ के साथ सोमवार सुबह 8.30 बजे सिद्धवरकूट में मंगल प्रवेश हुआ। आचार्य श्री 23 साल बाद सिद्धवरकूट सिद्ध क्षेत्र में पहुंचे। इस दौरान समाजजनों ने उनकी मंगल अगवानी की। कमेटी के आशीष चौधरी ने बताया 23 साल पहले सिद्धवरकूट से ऊन पावागिरिजी होते हुए बावनगजा, मांगीतुंगी के दर्शन के लिए गए थे। सभी क्षेत्रों के प्रति निष्ठा रखें। हमेशा याद रखें कि जब चक्रवर्ती कामदेव को अपना रूप पसंद नहीं आया तो फिर हमें समझना चाहिए कि तीर्थों पर जड़ सपंदा की कामना से नहीं सिद्धत्व की कामना से आना चाहिए।
 मुनिसंघ की अगवानी के लिए सुबह से जैन समाज के पुरुष, महिलाएं व बच्चे कडियाकुंड पहुंचे। जहां मुनिश्री की अगवानी की। 

4 किमी मार्ग पर रंगोली बनाकर आचार्यश्री का किया पाद प्रक्षालन
कडियाकुंड से सिद्धवरकूट चार किलोमीटर के मार्ग में जगह-जगह सड़कों पर आकर्षक रंगोली सजाई गई। आचार्यश्री का पाद प्रक्षालन किया। मुनिश्री के साथ बड़वाह, सनावद, खंडवा व अन्य क्षेत्र के सैकड़ों श्रद्धालु शामिल थे। संत शिरोमणि आचार्य श्री विद्यासागर जी मुनिराज ने 31 शिष्यों के साथ सिद्धवरकूट में प्रवेश किया तो बैंड-बाजों के साथ उनकी आगवानी की गई। धार्मिक भजनों की धुन सभी का मन मोह रही थी। सिद्धवरकूट परिसर में आकर्षक रंगोली बनाई गई। राजेंद्र महावीर ने बताया सिद्धोदय सिद्धक्षेत्र नेमावर से करीब 135 किमी पद विहार कर घने जंगलों के बीच से आचार्य श्री सिद्धवरकूट पहुंचे हैं। 
साढ़े तीन करोड़ मुनिराजों ने यहां सिद्ध पद प्राप्त किया
संत शिरोमणि आचार्य श्री विद्यासागर जी मुनिराज ने श्रद्धालुओं से कहा- एक बार यदि हमारी दृष्टि वीतरागता की ओर जम जाती है तो फिर दृष्टि दूसरी ओर नहीं जा पाती। चक्रवर्ती कामदेव की भी दुनिया में अपनी कामना की पूर्ति नहीं हुई। वह यहां पर हुई। इसलिए दो चक्रिय दस कामदेव सहित साढ़े तीन करोड़ मुनिराजों ने यहां आकर सिद्ध पद की प्राप्ति की है। चक्रवर्ती कामदेव तीर्थंकर ये सब पद महत्वपूर्ण नहीं है। सबसे महत्वपूर्ण यदि कोई पद है तो वह सिद्ध पद ही है। सिद्धवरकूट में वीतरागता का आकर्षण है जो सिद्धत्व की प्राप्ति करा सकता है। दुकानदार व ग्राहक के माध्यम से उदाहरण देते हुए कहा कि आप भले ही बड़े-बड़े शोरूम खोल लो लेकिन जो यहां मिलेगा वह कहीं और नहीं मिलेगा। जो कहीं नहीं मिलेगा वह यहां मिलेगा। चक्रवर्ती कामदेव को भी यहीं रेवा तट आकर उनके इष्ट मिले थे यह वही भूमि है।
सिद्धवरकूट में है प्रवास की संभावना
निमाड़ मालवा के भक्तों द्वारा संभावना व्यक्त की जा रही है कि आचार्य संघ 23 साल सिद्धवरकूट आया है। सिद्धवरकूट में आचार्य श्री शीतकालीन वाचना व अनेक आयोजनों की संभावना व्यक्त की जा रही है। सिद्धवरकूट कमेटी लंबे समय से आचार्यश्री से आग्रह करती रही है। कमेटी की प्रबल इच्छा है कि आचार्यश्री की प्रेरणा व आशीर्वाद से क्षेत्र में कार्य हो।
      संकलन अभिषेक जैन लुहाड़ीया रामगंजमंडी

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