सिस्टम से चलने वाला व्यक्ति कभी दुखी नहीं हो सकता: मुनि श्री प्रमाण सागर जी



आष्टा-व्यक्ति के हाथ में एक पल की सांस भी नहीं है। विपत्ति के समय में व्यक्ति को धैर्य रखना चाहिए। सिस्टम से चलने वाला व्यक्ति कभी दुखी नहीं हो सकता है। जो सिस्टम से नहीं चला, वह कभी सुखी नहीं हो सकता है। व्यक्ति को अपना कैरेक्टर सही रखना चाहिए। आज के लोग चरित्र को महत्व नहीं देते जबकि चरित्र खोया तो सब कुछ खो दिया। देश के अनेक नामचीन लोग आज अपना चरित्र खोने के कारण जेल की सलाखों के पीछे हैं। ज्ञान हमारे जीवन का इंजन है। व्यक्ति को अपनी प्राथमिकताएं सीमित करना चाहिए।
ये बातें पाश्र्वनाथ दिगंबर दिव्योदय अतिशय तीर्थ क्षेत्र किला मंदिर पर गुणायतन तीर्थ के प्रणेता मुनिश्री  प्रमाण सागर जी महाराज ने आशीष वचन व शंका समाधान के दौरान कहीं। मुनिश्री ने कहा कि जिस प्रकार खेल के लिए नियमावली है उसी प्रकार जीवन का सही आनंद लेना है तो नियमों का पालन करें। स्कू ल जितनी तत्परता के साथ समय पर भेजते हैं उसी प्रकार पाठशाला भेजने के लिए माता-पिता को ध्यान देना चाहिए। शिक्षा से ज्यादा संस्कार को महत्व दें। अच्छे संस्कार के लिए पाठशाला भेजें। बच्चों को प्लेटफार्म कल्चर हेतु उपलब्ध कराएं। अलौकिक शिक्षा से ज्यादा जरूरी धार्मिक शिक्षा और संस्कार है। मैं तो यह कहूं कि आज के समय में बच्चों के स्थान पर उनके माता-पिता को पाठशाला में शिक्षा देना चाहिए। ताकि वह अपने बच्चों को भी संस्कारित कर सकें। मुनि श्री ने कहा कि इस किले मंदिर और आष्टा वालों के लिए गौरव की बात है कि नौवीं, दसवीं शताब्दी की अतिशयकारी भगवान आदिनाथजी की 12 मनमोहक प्रतिमाएं हैं। दोहरापन जीवन को आगे नहीं बढऩे देता है। बच्चों के जीवन की मर्यादित बनाएं। उन्हें यह भी बताएं कि वह अपने माता-पिता का सम्मान करें। ज्ञान हमारे जीवन का इंजन है। सही ज्ञान के लिए उचित अनुचित का ध्यान रखें।
            संकलन अभिषेक जैन लुहाड़ीया रामगंजमंडी

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