सतवास- विश्व वन्दनीय आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज ने कहा मन हमारा है, न कि हम मन के है। इसलिए हमें मन की गुलामी नही करना चाहिए। हमेशा मन को नियंत्रण मे रखना है। मन का काम नही करना वरन मन से काम लेना है यही मुक्ति का द्वारा है। मन को वशीभूत कर हम भगवान के समान बन सकते है।
सतवास में आयोजित पंचकल्याण महोत्सव के समापन पर आचार्य श्री ने यह बात समझाई। गुरुवर ने कहा आज सब मन के अनुकूल सुख चाहते है जो धर्म दृष्टि से गलत है। उम्र, अस्वस्थ्य आदि कारणों से यदि शरीर के अनुकूल तो फिर भी ठीक है। अब हमें मन को वशीभूत करना होगा।
आचार्य श्री ने बड़ी सरलता से वैराग्य की दृढ़ता को समझाते हुए कहा कि पचकल्याण महोत्सव के प्रारंभ मे कुछ और माहौल होता है। आज समापन पर कुछ और माहौल नजर आ रहा है। सब कुछ सुना सुना हो गया, इसे देखकर ही वैराग्य और दृढ़ होता है। शमशान में आम लोग जाते है,साधु भी जाते है मगर साधु वहां जाकर आत्म चिंतन करता है। श्रावक वहां से आकर स्नान कर पुनः संसार में लिप्त हो जाता है। यही अंतर है साधु और सांसरिक प्राणी मे। सांसरिक मोह को त्यागने पर कहा जब मोह का क्षय होता है तभी मोक्ष की प्राप्ति होती है। समता के समीप रहने से क्षमता आती है इसीलिए हमे भगवान के समीप रहने से समता और क्षमता दोनो का ही विकास करना है। महाराज श्री ने मंच से कहा गुरुवर हमको आस है सतवास भी पास यह नारा कभी नही भूलूंगा।
सकलन अभिषेक जैन लुहाड़िया रामगंजमंडी

