बच्चों को ज्ञानवान एवं धन संपन्न बनाने के साथ-साथ सद्गुणी बनाने का भी प्रयास करें : मुनिश्री प्रशांतसागर जी


खुरई - प्राचीन जैन मंदिर में मुनिश्री प्रशांतसागर जी महाराज ने प्रवचन देते हुए  कहा कि चेहरे का रंग नहीं जीवन जीने का ढंग बदलना होगा आदमी की पहचान  चेहरे के रंग से नहीं जीवन जीने के ढंग से हुआ करती है। आप अपने बच्चों को  ज्ञानवान एवं धन सम्पन्न बनाने के साथ-साथ सद्गुणी बनाने का भी प्रयास  करें। धन सम्पन्नता और विद्वता के कारण लोग पहचानते हैं, लेकिन सरल  स्वभावी, सहज व्यक्ति को लोग पहचानते भी  हैं और चाहते भी हैं। अगर घर, परिवार में प्रेम को जीवित रखना चाहते हो तो  अपनी संतान को शरीर से सुंदर नहीं बल्कि स्वभाव से सुंदर बनने की प्रेरणा  दीजिए।
 जीने के लिए धरती पर प्रेम व सद् गुण होना जरूरी : मुनिश्री निर्वेगसागर जी  महाराज
 मुनिश्री निर्वेगसागर जी  महाराज ने कहा कि धरती पर प्रेम एवं सद्गुण न  हों तो कोई चार दिन भी जीना नहीं चाहेगा। दूसरी ओर यदि प्रेम, सदाचार या  सद्गुण हो तो व्यक्ति सौ वर्ष भी जीने को तैयार हो जाता है। परिवार का  बिखरना, तलाक का होना, एक-दूसरे के साथ रहने को तैयार न होना, प्रेम  सहनशीलता नम्रता जैसे गुणों का अभाव ही कारण बनता है। जिस घर में आपस में  प्यार होता है उसी का नाम सुखी परिवार होता है। विश्व की सारी समस्या का  समाधान सिर्फ प्रेम ही होता है।
 समाज में निंदा का कारण मोह और वासना बनती है, प्रेम नहीं अभयसागर जी

मुनिश्री अभयसागर जी महाराज ने कहा कि 'मेरी भावना' में एक पंक्ति आती है  'फैले प्रेम परस्पर जग में, मोह दूर ही रहा करे' इसका अर्थ ही यह होता है,  मोह शरीर और वस्तुओं से ही होता है जिससे दूर रहने को कहा गया है। समाज में  निंदा का कारण मोह और वासना बनती है, प्रेम नहीं। अपने बच्चों को धार्मिक,  नैतिक संस्कारों की वसीयत लिखकर जाइए। धर्म की वसीयत के अभाव में धन देकर  जाओगे तो वह आपस में लड़ेंगे। कहा भी है पुत्र सुपुत्र तो का धन संचय, वह  खुद कमा लेगा।
 पतिव्रता नारी का धर्म परिवार की व्यवस्थाओं में हस्तक्षेप करना नहीं होता बल्कि सहयोगी बनना होता है। प्रभातसागर जी

मुनिश्री प्रभातसागर जी महाराज ने कहा कि पतिव्रता नारी का धर्म परिवार की  व्यवस्थाओं में हस्तक्षेप करना नहीं होता बल्कि सहयोगी बनना होता है। आप  लोगों की पत्नी को थोड़ा सा धन या जेवर कम मिल जाता है तो लड़ाइयां शुरू हो  जाती हैं। राम, लक्ष्मण और सीता ने तो सबकुछ त्याग कर दिया घर की प्रतिष्ठा  के लिए। धन, राज्य पुनः प्राप्त किया जा सकता है लेकिन प्रेम और प्रतिष्ठा  पुनः नहीं पाया जा सकता है।
                 संकलन अभिषेक जैन लुहाडीया रामगंजमंडी

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