दमोह-गर्भावस्था के संस्कार जीवन भर काम आते हैं। गर्भस्थ शिशु मां के पेट से ही अनेक कलाएं व विद्या सीखकर जन्म लेता है। यह अलग बात है कि जन्म के कुछ वर्ष तक वह अपने संस्कारों को व्यक्त नहीं कर पाता लेकिन उसके हाव भाव से इस बात की अभिव्यक्ति होने लगती है उसने मां के गर्भ में क्या सीखा है।
माताओं को गर्भावस्था के दौरान अपने आचार-विचार ऐसे रखना चाहिए जैसे वह अपने शिशु में गुण देखना चाहती हैं। यह मंगल उद्गार आचार्य श्री 108 विद्यासागर जी महाराज की शिष्या आर्यिका रत्न सकल मति माताजी ने श्री दिगंबर जैन पार्श्वनाथ नन्हे मंदिर में रविवारीय धर्म सभा के दौरान अभिव्यक्त किए।
माताजी ने धर्म का मर्म समझाते हुए कहा कि आज की नई पीढ़ी धर्म से विमुख होती जा रही है। दिनचर्या में पूजन पाठ की जगह मोबाइल, वाट्सएप, सोशल मीडिया ने घेर लिया, जिसके लिए कहीं न कहीं बच्चों को गर्भ में मिलने वाले संस्कार जिम्मेदार हैं। माताजी ने महाभारत कालीन पौराणिक प्रसंग का उल्लेख करते हुए कहा कि जिस तरह अभिमन्यु ने माता के गर्भ में रहते हुए चक्रव्यूह में प्रवेश करने का ज्ञान प्राप्त कर लिया था वही माता के सो जाने से वह चक्रव्यूह से बाहर निकलने का ज्ञान अर्जित नहीं कर पाया था। जीवन भर उसे चक्रव्यूह में प्रवेश का ज्ञान बना रहा उसने महाभारत युद्ध के दौरान चक्रव्यूह में प्रवेश भी कर लिया था लेकिन बाहर निकलने का ज्ञान नहीं होने से वह चक्रव्यूह में फसने के बाद बाहर नहीं निकल पाया था। ठीक इसी तरह आज भी बच्चे गर्भावस्था के दौरान मां के पेट से जो सीखते हैं उसकी अभिव्यक्ति जन्म के बाद करते नजर आते हैं। उन्होंने टीवी पर आने वाले धार्मिक कार्यक्रम तथा फूहड़ सीरियल की चर्चा करते हुए कहा कि जो माता गर्भावस्था में जिस तरह के कार्यक्रम देखतीं व श्रवण करतीं हैं उनके बच्चे भी जन्म के बाद कुछ ऐसी ही अभिव्यक्ति करते नजर आते हैं। माताजी ने कहा कि महिलाओं को बच्चों के जन्म के पूर्व से ही वैसे ही आचार विचार रखने चाहिए जैसे कि वह जन्म के बाद अपने बच्चों को बनाना चाहतीं हैं।
संकलन अभिषेक जैन लुहाड़ीया रामगंजमंडी

