खुरई-मुनिश्री प्रशांत सागर जी महाराज ने प्रवचन देते हुए कहा कि मां की ममता, धरती की क्षमता और साधु की समता का कोई ओर-छोर नहीं होता। इसका ओर-छोर पाने के लिए धरती या साधु बनना पड़ेगा। उन्हाेंने कहा कि प्रेमिका वह होती है जो आंख बंद करके प्रेम करती है, पत्नी वह होती है जो आंख दिखाकर प्रेम करती है, मां वह होती है जो आंख बंद होने तक प्रेम करती है। आज का युग शायद इन पवित्र रिश्ताें की गरिमा को समझ पाता तो कितना अच्छा होता। युवकों से मेरा कहना है कि जब कभी तुम शादी के उद्देश्य से किसी लड़की को देखने जाओ तो उससे एक ही बात पूछना कि तुम्हारी अपनी मां से बनती है या नहीं। यदि वह कहती है हां तो ठीक है। यही बात युवतियों पर भी लागू होती है वह भी पूछ सकती है लड़के से कि अपने पिता और बहिन से बनती है कि नहीं। यदि हां तो ठीक है।
उन्हाेंने कहा कि रिश्ता कभी मत तोड़ना चाहे माता-पिता, भाई-बहिन, पति-पत्नी, गुरू-शिष्य किसी का भी रिश्ता हो। पहला रिश्ता कायम रहे तभी दूसरा रिश्ता जोड़ना। माता-पिता एवं परिजन का दिल दुखाकर या तोड़कर कभी नया रिश्ता नहीं जोड़ना। चंद स्वार्थ के कारण चांद समान जीवन को धूमिल मत करना। किसी का दिल मत तोड़ना, माता-पिता और उपकारी का कभी दिल मत तोड़ना। जो वचन दिया हो उसे कभी मत तोड़ना- रघुकुल रीति सदा चली आई, प्राण जाएं पर वचन न जाई। इतिहास में रामचंद्र जैसे बेटे हुए हैं जिन्होंने अपने पिता के वचनों के लिए अयोध्या के राज्य का त्याग भी कर दिया था और वनवास स्वीकार कर लिया था।
उन्हाेंने कहा कि कभी विश्वास मत तोड़ना-
दुनिया के सारे रिश्ते विश्वास की नींव पर ही टिके होते हैं। जहां विश्वास होता है वहां प्रेम होता है, जहां प्रेम होता है वहां विश्वास होता है और जहां प्रेम और विश्वास रहते हैं वहां रिश्ते अमर हो जाते हैं। विश्वास निभाना जीवन में साधक है, विश्वास भुलाना बाधक है और विश्वासघात करना जीवन को घातक है। कीमत पानी की नहीं प्यास की होती है, कीमत मौत की नहीं श्वांस की होती है। दुनिया में प्रेम तो बहुत करते हैं कीमत प्रेम की नहीं विश्वास की होती है।
संकलन अभिषेक जैन लुहाड़ीया रामगंजमंडी
