जनवरी 2004 में सरकारी कर्मचारियों के लिए केंद्र सरकार ने वर्षों से चली आ रही पुरानी पेंशन व्यवस्था को खत्म करके उसके स्थान पर एक बाजार आधारित पेंशन व्यवस्था नेशनल पेंशन सिस्टम की शुरुआत की। धीरे धीरे पश्चिम बंगाल को छोड़ कर सभी राज्यों ने इस व्यवस्था को स्वीकार कर लिया। इस व्यवस्था के तहत सरकार ने कर्मचारियों के वेतन से अनिवार्य रूप से 10% की कटौती उनके सेवानिवृत्ति के बाद पेंशन के लिए करनी शुरू कर दी एवं 10% के बराबर ही स्वयं रकम मिलाकर कुल 20% रकम को एलआईसी यूटीआई और एसबीआई में बराबर बराबर निवेश करना शुरू किया। सरकार की दलील थी कि इस व्यवस्था से पुरानी पेंशन के अपेक्षा कहीं ज्यादा सेवानिवृत्ति पश्चात कर्मचारियों को पेंशन प्राप्त होगी किंतु इस व्यवस्था में कुछ गंभीर खामियां रह गई जिनके कारण आज 16 साल बाद पूरे देश के 67 लाख कर्मचारियों में निराशा और रोष है जिस कारण वे लगातार अलग-अलग राज्यों में एनएमओपीएस के बैनर तले प्रदर्शन कर रहे हैं।
आज इस प्रदर्शन में शिक्षक, कर्मचारी, रेलवे पोस्टल, इंजीनियर, चतुर्थ कर्मचारी, ऑर्डिनेंस एवं तमाम विभाग और उनकी यूनियन शामिल हो चुके हैं। नेशनल पेंशन सिस्टम यानी एनपीएस में कुछ गंभीर खामियों पर हम नजर डालते हैं-
1- इसमें 20 साल की सरकारी सेवा पूरी करने के पश्चात मिलने वाली मिनिमम पेंशन की निश्चित गारंटी नहीं है जैसा कि पहले अंतिम वेतन का 50% तय थी एवं उस पर महंगाई भत्ते का प्रावधान था।
2- सेवानिवृत्त होने पर भी इसमें अंतिम बेसिक सैलेरी पर ना तो निश्चित पेंशन की गारंटी है और ना ही उस पर महंगाई भत्ते का प्रावधान है, और ना ही पेंशन रिवीजन का प्रावधान है।
3- सेवाकाल में मृत्यु होने की दशा में कर्मचारी के परिवार को उपयुक्त फैमिली पेंशन का अब तक प्रावधान नहीं हुआ है, यही नहीं मृत्यु की दशा में सरकार कर्मचारी की फैमिली को फैमिली पेंशन देने के नाम पर पेंशन के लिए जमा की गई समस्त धनराशि को भी वापस ले लेती है जिसमें आधा हिस्सा स्वयं कर्मचारी का था।
4- कर्मचारी पेंशन के लिए 10% सैलरी को निवेश चित करने के लिए बाध्य है और इस रकम को वह सेवानिवृत्ति तक निकाल भी नहीं सकता है।
5- पहले पेंशन के लिए कर्मचारी को कुछ भी निवेशक नहीं करना पड़ता था। पेंशन पूरी तरह से सरकार की जिम्मेदारी थी।
6- उत्तर प्रदेश जैसे बड़े राज्य में एनपीएस व्यवस्था लागू तो कर दी गई किंतु आज तक कई लाख कर्मचारियों के वेतन से ना तो 10% रकम काटी गई और ना ही उसमें सरकार का हिस्सा मिला कर कहीं निवेशित किया गया, और अब वे कर्मचारी धीरे-धीरे सेवानिवृत्त हो रहे हैं ऐसी स्थिति में उन्हें कोई पेंशन ही नहीं प्राप्त हो रही है।
के पी जैन आई टी सेल मध्य प्रदेश व जिला संयोजक शिवपुरी ने बताया कि इसके कारण आज पूरे हिंदुस्तान से इस व्यवस्था के खिलाफ विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं। 30 अप्रैल 2018 को रामलीला मैदान में कर्मचारियों ने एक बहुत बड़ा प्रदर्शन किया उसके बाद 26 नवंबर 2018 को पुनः रामलीला मैदान में लाखों कर्मचारी इकट्ठे हुए और पुरानी पेंशन बहाली की मांग की। 27 जनवरी से लेकर 1 फरवरी 2019 तक कई हजार कर्मचारी जंतर मंतर पर भूख हड़ताल पर बैठे और पुरानी पेंशन बहाली की मांग की किंतु सरकार ने पुरानी पेंशन बहाली की जगह अपने हिस्से को 10% से बढ़ाकर के 14% कर दिया लेकिन कर्मचारी इस से बिल्कुल सहमत नहीं हुए और मनजीत सिंह पटेल के नेतृत्व में 9 नवंबर 2019 को दिल्ली के शहीदी पार्क में धारा 144 लागू होने के बावजूद सत्याग्रह पर हजारों की संख्या में एनपीएस के खिलाफ इकट्ठे हुए और लगातार चार दिन तक सत्याग्रह पर बैठे रहे। राम मंदिर पर फैसला आने के कारण देश का सांप्रदायिक माहौल ना खराब हो जाए इसलिए कर्मचारियों ने सत्याग्रह को दिल्ली से उठाकर देश के कोने कोने में ले जाने का फैसला किया। 13 नवंबर को दिल्ली से पेंशन सत्याग्रह उठकर मध्य प्रदेश के मैहर में पेंशन जागरूकता रैली प्रारंभ कर मध्य प्रदेश के विभिन्न जिलों में जनजागृति लाने के बाद गुजरात के अहमदाबाद में शुरू हुआ। लगातार गुजरात के कई शहरों में अलग-अलग दिनों पर कर्मचारी सत्याग्रह करते और अन्य कर्मचारियों को जगाने में लगे रहे। दिसंबर 2019 में उत्तर प्रदेश के रेलवे स्टेशन टुंडला पर नेत्रपाल डागर के नेतृत्व में हजारों कर्मचारी सत्याग्रह पर बैठे। 22 दिसंबर को अगला सत्याग्रह रेलवे इटारसी में प्रस्तावित है साथ ही बिहार उड़ीसा पश्चिम बंगाल उत्तराखंड पंजाब में भी सत्याग्रह की सुगबुगाहट होने लगी है।
कालांतर में यह आंदोलन पूरे देश में फैल सकता है अभी हाल फिलहाल में झारखंड के चुनाव में यह प्रमुख मुद्दा रहा है जिसे झारखंड मुक्ति मोर्चा और कांग्रेस ने संयुक्त रूप से उठाया है। निश्चित रूप से वहां के चुनावों में इस मुद्दे का असर दिखाई पड़ने वाला है। एनएमओपीएस के राष्ट्रीय प्रवक्ता मनजीत सिंह पटेल का कहना है कि हम कर्मचारियों की केवल दो छोटी सी डिमांड है यदि सरकार सुनना चाहें तो इस मुद्दे को बहुत ही सरलता से सुलझाया जा सकता है किंतु सरकार हठधर्मिता पर उतारू है और वह कर्मचारियों की कोई बात सुनने को तैयार ही नहीं है। जो निश्चित रूप से बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण है एवं भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए अत्यंत खतरनाक है। आज हर राज्य में विधायकों और संसद में कई सांसदों के द्वारा इस मुद्दे को प्रमुखता से उठाया जा चुका है और कई बार गृहमंत्री जी से मुलाकात भी हो चुकी है किंतु शायद सरकार ने प्राइवेट कंपनियों को फायदा पहुंचाने की नियत से इस मुद्दे पर चुप्पी साध रखी है जो ना केवल कर्मचारियों के लिए नुकसानदेह है बल्कि भारत की अर्थव्यवस्था के लिए भी ठीक नहीं है। इसी साल 15 जनवरी 2000 19 को आइएलएफएस कंपनी में 92000 करोड रुपए डूब गए जिनमें सोलह सौ करोड़ रुपए कर्मचारियों के पेंशन फंड के थे।
यूपीपीसीएल मैं अभी हाल ही में दिसंबर माह में घोटाला उजागर हुआ है जिसमें ढाई हजार करोड़ रुपए एनपीएस के तहत जमा किए गए थे किंतु उन पैसों को कहीं निवेशित ही नहीं किया गया।
उत्तर प्रदेश ऐसी सरकार कई वर्षों से कर्मचारियों के एनपीएस हिस्से में अपना कंट्रीब्यूशन जमा ही नहीं कर पा रही है ऐसी स्थिति में वह सेवानिवृत्ति के बाद कर्मचारी को पेंशन क्या देगी?
आज जो लोग सेवानिवृत्त हो रहे हैं जिन्होंने 30 ,35 वर्ष अपनी सेवाएं दी हैं उन्हें रिटायरमेंट के बाद किसी को ₹400 किसी को 800 किसी को 12:00 ₹100 तक की पेंशन मिल रही है जो वृद्धावस्था पेंशन से भी कम है ऐसी स्थिति में एनपीएस जो सामाजिक सुरक्षा की गारंटी नहीं दे रही है उस पर विश्वास कैसे किया जा सकता है?
कर्मचारियों की मांग है कि एनपीएस व्यवस्था में केवल दो बातों का प्रावधान पूरी समस्या का समाधान कर सकता है जो मुमकिन भी है। यदि कर्मचारी के हिस्से को जीपीएफ की सुविधा प्रदान कर दी जाए और सरकार के द्वारा किए गए 14% कंट्रीब्यूशन पर सेवानिवृत्ति के पश्चात अंतिम बेसिक सैलरी का न्यूनतम गारंटीड प्रतिशत पेंशन का आधार तय कर दिया जाए और उस पर महंगाई भत्ते का प्रावधान किया जाए। इस प्रक्रिया में सरकार के ऊपर कोई बोझ भी नहीं पड़ेगा और ना ही एनएसडीएल कंपनी को कोई. नुकसान होगा और कर्मचारी की समस्याएं भी खत्म हो जाएंगी, वरन सरकार को कर्मचारी के हिस्से पर अतिरिक्त रिटर्न का फायदा भी मिलेगा।
Good news
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