बांसवाड़ा-चतुर्दशी पर्व के दिन उपवास की साधना में रत आचार्य सुनील सागरजी ने अपने मोन को विराम देकर जनहित के लिए अपनी मंगल वाणी में कहा कि हर संसारी प्राणी एक मुसाफिर है। जो रास्तों में अपनी यादें छोड़ जाता है। दूसरों की पुण्यतिथि मनाते हुए अपनी पुण्यतिथि को भूल जाता है। जैसे चमरी गाय इस सोच से कि अपनी पूंछ का बाल न टूट जाए। वह शिकारी के हाथों मर जाती है। वैसे ही इंसान जीवन के अंत तक अपनी मूंछ के 2- 4 बाल संभालने के पीछे कब मौत सामने आ जाती है खबर ही नहीं रखता। जीव अकेला जन्म लेता है, अकेला ही मरता है, कुछ भी साथ नहीं ले जाता है। एक जानवर भी खूंटी से बंधना पसंद नहीं करता। क्या मालूम इंसान क्यों खुशी खुशी बंधन में बंधता है । जिंदगी भर मांग भरता रहता है, एक से दो होना ही सारी समस्या की जड़ है । गृहस्थी में प्रवेश किया है तो फिर ईमानदारी और समझदारी से निभाओ, बेटा बेटी भी माता पिता की आज्ञा से कुटुम के प्रतिष्ठा अनुरूप कार्य करें। आचार्य श्री ने कहा कि दृष्टि और पुरुषार्थ उन कर्मों के प्रति रखो जो साथ में जाते हैं। संयम नियम का बंधन मुक्ति का कारण बनता है। घर परिवार समाज भी मर्यादा में नियंत्रित रहे और हम स्वयं अपनी चेतना के दायरे में रहे तभी मुसाफिर को मंजिल मिल सकती है । पुन आचार्य श्री ने ऑस्ट्रेलिया के जंगलों में लगी आग के कारण मारे गए जानवरों की आत्मा की शांति के लिए भक्तामर का पाठ करने का संदेश दिया।
संकलन अभिषेक जैन लुहाड़ीया रामगंजमंडी
